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19. सविनय कानून-भंग का स्थान

इन पृष्ठों में मैंने यह बताया है कि रचनात्मक कार्यक्रम के अमल में हम अपने समूचे राष्ट्र का सहयोग प्राप्त कर सकें, तो शुद्ध अहिंसक पुरुषार्थ से आजादी हासिल करने के लिए यह जरूरी नहीं कि सविनय कानून-भंग या सिविल नाफरमानी की लड़ाई लड़नी ही पड़े। लेकिन क्या व्यक्ति और क्या राष्ट्र, किसी को इतना अच्छा सौभाग्य शायद ही कभी मिलता है। इसलिए यहां यह समझ लेना जरूरी है कि राष्ट्रव्यापी अहिंसक पुरुषार्थ में सविनय कानून-भंग या सत्याग्रह की लड़ाई का क्या स्थान है।

सविनय कानून-भंग के तीन अलग-अलग काम हैं :

1. किसी स्थानीय अन्याय या शिकायत को दूर करने के लिए इसका सफल प्रयोग किया जा सकता है।

2. किसी खास अन्याय, शिकायत या बुराई के खिलाफ, उसे मिटाने के मसले पर कोई खास असर डालने का इरादा न रखते हुए, स्थानीय जनता को उस अन्याय या शिकायत या बुराई का भान कराने या उसके दिल पर असर डालने के लिए कुरबानी या आत्म-बलिदान की भावना से भी सविनय कानून-भंग किया जा सकता है। चम्पारन में यही हुआ था। वहां अपने काम का क्या असर होगा, इसका हिसाब लगाये बिना और यह अच्छी तरह जानते हुए भी कि शायद लोग जरा भी दिलचस्पी नहीं लेंगे, मैंने कानून का सविनय-भंग किया था। मेरे काम का नतीजा कुछ और ही हुआ, जो सोचा नहीं गया था। इसे अपनी रुचि के अनुसार आप ईश्वर की कृपा या तकदीर का खेल मान सकते हैं।

3. रचनात्मक कार्य में जनता का पूरा सहयोग न मिलने पर उसके बदले में सन् 1941 में छिड़े सत्याग्रह की तरह सविनय कानून-भंग की लड़ाई छेड़ी जा सकती है। अगरचे वह लड़ाई हमारी आजादी की संपूर्ण लड़ाई के एक हिस्से के रूप में उसे बल पहुंचाने के खयाल से शुरू की गई थी, फिर भी उसे जान-बुझ कर भाषण-स्वातंत्र्य के एक खास मुद्दे तक ही मर्यादित रखा गया था। सविनय कानून-भंग की लड़ाई किसी एक व्यापक हेतु के लिए, मसलन्, पूर्ण स्वराज्य के लिए नहीं लड़ी जा सकती। लड़ाई की मांग स्पष्ट, सामनेवाले को साफ साफ समझ में आनेवाली और उसके द्वारा पूरी की जा सकने लायक होनी चाहिये। अगर इस तरीके पर ठीक से अमल किया जा सके, तो यह हमें ठेठ अपने लक्ष्य तक जरूर ले जाय।

यहां सविनय कानून-भंग के समूचे क्षेत्र की और उसकी तमाम संभावनाओं की कोई पड़ताल मैंने नहीं की। पाठकों को रचनात्मक कार्यक्रम और सविनय कानून-भंग का सम्बन्ध समझाने के लिए जितनी चर्चा जरूरी है उतनी ही मैंने यहां की है। ऊपर दिये गये पहले दो उदाहरणों में बड़े पैमाने पर रचनात्मक काम की जरूरत नहीं; न होनी चाहिये। लेकिन सविनय कानून-भंग के जरिये सम्पूर्ण स्वराज्य प्राप्त करने का इरादा हो, तो पहले से तैयारी करने की जरूरत रहती है। और इस तैयारी के पीछे इस लड़ाई में शामिल होनेवाले लोगों के प्रत्यक्ष और सोच-समझकर किये गये पुरुषार्थ का बल होना चाहिये। इस तरह सविनय कानून-भंग लड़वैयों को उत्साहित करनेवाला और प्रतिपक्षी को चुनौती देनेवाला है। पाठकों को यह समझ लेना चाहिये कि पूर्ण स्वराज्य की सिद्धि के लिए सविनय कानून-भंग की लड़ाई, रचनात्मक कार्यक्रम में करोड़ों देशवासियों के सहयोग के अभाव में, निरी बकवास बन जाती है; और वह निकम्मी ही नहीं, नुकसानदेह भी है।

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