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18. विद्यार्थी

रचनात्मक कार्यक्रम की चर्चा में मैंने विद्यार्थियों को बिलकुल अखीर के लिए रख छोड़ा था। मैंने हमेशा उनके साथ गाढ़ सम्बन्ध रखा और बढ़ाया है। विद्यार्थी मुझे पहचानते हैं और मैं उनको पहचानता हूं। उन्होंने मेरा बहुत काम किया है। कॉलेजों से निकले हुए बहुतेरे विद्यार्थी आज मेरे माने हुए साथी हैं। साथ ही, मैं यह भी जानता हूं कि विद्यार्थी भविष्य की आशा हैं। जब असहयोग आन्दोलन अपनी पूरी बहार में था, तब उनसे कहा गया था कि वे स्कूलों और कॉलेजों में पढ़ना छोड़ दें। कांग्रेस की इस पुकार के जवाब में जिन अध्यापकों और विद्यार्थियों ने स्कूलों और कॉलेजों में जाना छोड़ दिया था, उनमें से कई आज भी राष्ट्र के काम में .ढ़ता के साथ लगे हुए हैं, जिससे खुद उनको और साथ ही देश को बहुत फायदा पहुंचा है। यह पुकार दुबारा नहीं की गई, क्योंकि आज उसके लायक हवा नहीं है। लेकिन उस समय के अनुभव से इतना तो मालूम हुआ कि वर्तमान शिक्षा का मोह, यद्यपि वह झूठा और अस्वाभाविक है, देश के नौजवानों पर कुछ ऐसा हावी हुआ है कि वे उससे छूट नहीं सकते। कॉलेज में पढ़ने से `केरिअरूसुधर जाता है। दूसरे, हमारे देश में ब्रिटिश हुकूमत ने सफेदपोश लोगों का जो एक समूह पैदा किया है, उसमें शामिल होने का परवाना भी कॉलेज की शिक्षा से मिलता है। ज्ञान की भूख को, जो स्वाभाविक और क्षम्य कही जायेगी, तृप्त करने के लिए जो रास्ता बना हुआ है, उस पर चले बिना चारा नहीं। मातृभाषा के स्थान को पचाकर बैठी हुई बिलकुल पराई भाषा को सीखने में वे अपने कितने कीमती वर्ष बिगाड़ देते हैं, इसकी उन्हें कोई परवाह नहीं। और, इसमें जो गंभीर ौाsह या पाप होता है, उसका तो उन्हें पता तक नहीं। इन विद्यार्थियों और इनके शिक्षकों के मन में कोई ऐसा भूत भर गया है, जिससे उनके खयाल में आज के जमाने के नये विचारों और आधुनिक विज्ञान का ज्ञान पाने के लिए अपने घर की भाषाएं बिलकुल निकम्मी ठहरती हैं। मुझे आश्चर्य इस बात का है कि जापानवाले अपना काम किस तरह चलाते होंगे, क्योंकि जहां तक मैं समझा हूं, उन्हें सारी शिक्षा अपनी भाषा में दी जाती है। और चीन के सबसे बड़े अधिकारी जनरलिस्सिमो च्यांग काई शेक को अंग्रेजी अगर आती भी है तो नहीं के बराबर ही।

मगर हमारे ये विद्यार्थी जैसे हैं वैसे हैं। और इन्हप नौजवान स्त्रियों और पुरुषों में से राष्ट्र के भावी नेता तैयार होनेवाले हैं। दुर्भाग्य यह है कि उन पर जिस-तिस हवा का असर हो जाता है। अहिंसा की तरफ उनका कोई खास खिंचाव नहीं। घूंसे के बदले घूंसा या एक के बदले दो घूंसों की बात उन्हें आसानी से पटती और पसंद पड़ जाती है। उसका परिणाम, फिर वह क्षणजीवी ही क्यों न हो, तत्काल दिखाई पड़ता है। लड़ाई के मौके पर जानवर-जानवर या मनुष्य-मनुष्य के बीच हिंसक या पाशवी शक्ति की कभी न खतम होनेवाली जो होड़ाहोड़ी हमें देखने को मिलती है वही यह चीज है। अहिंसा को अच्छी तरह पहचानने के लिए धीरज के साथ शोध और उससे भी ज्यादा धीर और कठोर आचरण की जरूरत होती है। किसानों और मजदूरों के मामले में जिन कारणों से मैंने अपना रास्ता अलग चुना है, उन्हप कारणों से मैं उन लोगों के साथ भी होड़ में शामिल नहीं हुआ, जो विद्यार्थियों के हृदय पर अधिकार करने की उम्मीद रखते हैं। लेकिन अगर विद्यार्थी शब्द का अधिक व्यापक अर्थ किया जाय, तो मैं भी उनका सहपाठी विद्यार्थी हूं, क्योंकि मेरी युनिवर्सिटी दूसरी है। मैं शोध या अनुसन्धान का जो काम कर रहा हूं, उसमें शामिल होने के लिए अपनी इस युनिवर्सिटी में भरती होने का स्थायी निमंत्रण मैं उन्हें देता हूं। उसमें भरती होने के नियम इस प्रकार हैं :

1. विद्यार्थियों को दलबन्दीवाली राजनीति में कभी शामिल न होना चाहिये। विद्यार्थी विद्या के खोजी और ज्ञान की शोध करनेवाले हैं, राजनीति के खिलाड़ी नहीं।

2. उन्हें राजनीतिक हड़तालें न करनी चाहिये। विद्यार्थी वीरों की पूजा चाहे करें, उन्हें करनी चाहिये; लेकिन जब उनके वीर जेलों में जायें, या मर जायें, या यों कहिये कि उन्हें फांसी पर लटकाया जाय, तब उनके प्रति अपनी भक्ति प्रकट करने के लिए उनको उन वीरों के उत्तम गुणों का अनुकरण करना चाहिये, हड़ताल नहीं। ऐसे मौकों पर विद्यार्थियों का शोक असह्य हो जाय और हरएक विद्यार्थी की वैसी भावना बन जाय, तो अपनी संस्था के अधिकारी की सम्मति से स्कूल और कॉलेज बन्द रखे जायें। संस्था के अधिकारी विद्यार्थियों की बात न सुनें, तो उन्हें छूट है कि वे उचित रीति से, सभ्यतापूर्वक, अपनी-अपनी संस्थाओं से बाहर निकल आयें और तब तक वापस न जायें, जब तक संस्था के व्यवस्थापक पछताकर उन्हें वापस न बुलायें। किसी भी हालत में और किसी भी विचार से उन्हें अपने से भि़ मत रखनेवाले विद्यार्थियों या स्कूलगकॉलेज के अधिकारियों के साथ जबरदस्ती न करनी चाहिये। उन्हें यह विश्वास होना चाहिये कि अगर वे अपनी मर्यादा के अनुरूप व्यवहार करेंगे और मिलकर रहेंगे तो जीत उन्हप की होगी।

3. सब विद्यार्थियों को सेवा की खातिर शास्त्राhय तरीके से कातना चाहिये। कताई के अपने साधनों और दूसरे औजारों को उन्हें हमेशा साफ-सुथरा, सुव्यवस्थित और अच्छी हालत में रखना चाहिये। संभव हो तो वे अपने हथियारों, औजारों या साधनों को खुद ही बनाना सीख लें। अलबत्ता, उनका काता सूत सबसे बढ़िया होगा। कताई सम्बन्धी सारे साहित्य का और उसमें छिपे आर्थिक, सामाजिक, नैतिक और राजनीतिक सब रहस्यों का उन्हें अध्ययन करना चाहिये।

4. अपने पहनने-ओढ़ने के लिए वे हमेशा खादी का ही उपयोग करें, और गांवों में बनी चीजों के बदले परदेश की या यंत्रों की बनी वैसी चीजों को कभी न बरतें।

5. वन्देमातरम् गाने या राष्ट्रीय झण्डा फहराने के मामले में दूसरों पर जबरदस्ती न करें। राष्ट्रीय झण्डे के बिल्ले वे खुद अपने बदन पर चाहे लगायें, लेकिन दूसरों को उसके लिए मजबूर न करें।

6. तिरंगे झण्डे के सन्देश को अपने जीवन में उतारकर दिल में साम्प्रदायिकता या अस्पृश्यता को घुसने न दें। दूसरे धर्म़ोंवाले विद्यार्थियों और हरिजनों को अपने भाई समझकर उनके साथ सच्ची दोस्ती कायम करें।

7. अपने दुखी-दर्दी पड़ोसियों की सहायता के लिए वे तुरन्त दौड़ जायें; आसपास के गांवों में सफाई का और भंगी का काम करें और गांवों के बड़ी उमरवाले स्त्राh-पुरुषों व बच्चों को पढ़ायें।

8. आज हिन्दुस्तानी का जो दोहरा स्वरूप तय हुआ है, उसके अनुसार उसकी दोनों शैलियों और दोनों लिपियों के साथ वे राष्ट्रभाषा हिन्दुस्तानी सीख लें, ताकि जब हिन्दी या उर्दू बोली जाय अथवा नागरी या उर्दू लिपि लिखी जाय, तब उन्हें वह नई न मालूम हो।

9. विद्यार्थी जो भी कुछ नया सीखें, उस सबको अपनी मातृभाषा में लिख लें और जब वे हर हफ्ते अपने आसपास के गांवों में दौरा करने निकलें, तो उसे अपने साथ ले जायें और लोगों तक पहुंचायें।

10. वे लुक-छिपकर कुछ न करें; जो करें खुल्लम-खुल्ला करें। अपने हर काम में उनका व्यवहार बिलकुल शुद्ध हो। वे अपने जीवन को संयमी और निर्मल बनायें। किसी चीज से न डरें और निर्भय रहकर अपने कमजोर साथियों की रक्षा करने में मुस्तैद रहें; और दंगों के अवसर पर अपनी जान की परवाह न करके अहिंसक रीति से उन्हें मिटाने को तैयार रहें। और, जब स्वराज्य की आखिरी लड़ाई छिड़ जाय, तब अपनी संस्थाएं छोड़कर लड़ाई में कूद पड़ें और जरूरत पड़ने पर देश की आजादी के लिए अपनी जान कुरबान कर दें।

11. अपने साथ पढ़नेवाली विद्यार्थिनी बहनों के प्रति अपना व्यवहार बिलकुल शुद्ध और सभ्यतापूर्ण रखें।

ऊपर विद्यार्थियों के लिए मैंने जो कार्यक्रम सुझाया है, उस पर अमल करने के लिए उन्हें समय निकालना होगा। मैं जानता हूं कि वे अपना बहुत-सा समय यों ही बरबाद कर देते हैं। अपने समय में सख्त काट-कसर करके वे मेरे द्वारा सुझाये गये काम के लिए कई घण्टों का समय निकाल सकते हैं। लेकिन किसी भी विद्यार्थी पर मैं बेजा बोझा लादना नहीं चाहता। इसलिए देश से प्रेम रखनेवाले विद्यार्थियों को मेरी यह सलाह है कि वे अपने अभ्यास के समय में से एक साल का समय इस काम के लिए अलग निकालें; मैं यह नहीं कहता कि एक ही बार में वे सारा साल दे दें। मेरी सलाह यह है कि वे अपने समूचे अभ्यास-काल में इस साल को बांट लें और थोड़ा-थोड़ा करके पूरा करें। उन्हें यह जानकर आश्चर्य होगा कि इस तरह बिताया हुआ साल व्यर्थ नहीं गया। इस समय में की गई मेहनत के जरिये वे देश की आजादी की लड़ाई में अपना ठोस हिस्सा अदा करेंगे, और साथ ही अपनी मानसिक, नैतिक और शारीरिक शक्तियां भी बहुत-कुछ बढ़ा लेंगे।

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