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17. कोढ़ी

कोढ़ी एक बदनाम शब्द है। कोढ़ियों के धाम के नाते मध्य अफ्रीका के बाद दूसरा नम्बर हिन्दुस्तान का आता है। फिर भी हममें जो सबसे श्रेष्ठ या बढ़े-चढ़े हैं, उन्हप की तरह ये कोढ़ी भी हमारे समाज के अंग हैं। पर हकीकत यह है कि चोटी के उन कुछ लोगों पर ही हम सबका ध्यान लगा हुआ है, जब कि उन्हें हमारे ध्यान की कम-से-कम जरूरत है। और जिन कोढ़ियों की सार-संभाल की सबसे ज्यादा जरूरत है, उन्हप की हमारे यहां जान-बूझकर उपेक्षा की जाती है। दिल होता है कि इस उपेक्षा को हृदयहीनता के नाम से पुकारूं, और अहिंसा की दृष्टि से तो सचमुच ही इसके लिए दूसरा कोई विशेषण नहप है। हिन्दुस्तान में काम करनेवाले अकेले ईसाई मिशनरी ही हमारे कोढ़ियों की चिन्ता करते हैं, और इसके लिए वे अवश्य ही धन्यवाद के पात्र हैं। कोढ़ियों की सार-संभाल के लिए हिन्दुस्तानियों की ओर से चलनेवाली एकमात्र संस्था वर्धा के पास काम कर रही है, और श्री मनोहर दीवान उसे केवल प्रेमपूर्ण सेवा के भाव से चला रहे हैं। इस संस्था को श्री विनोबा भावे की प्रेरणा और रहनुमाई प्राप्त है। अगर हिन्दुस्तान में सचमुच नवजीवन का संचार हुआ है, और हम सब सत्य और अहिंसा के मार्ग से कम-से-कम समय में पूर्ण स्वराज्य पाने के लिए दिल से बेचैन हैं, तो हिन्दुस्तान में एक भी कोढ़ी या एक भी भिखारी ऐसा न होना चाहिये, जिसका नाम हमारे पास दर्ज न हो और जिसकी सार-संभाल हमने की न हो। रचनात्मक कार्यक्रम की इस सुधारी हुई आवृत्ति में हमारे रचना-कार्य की जंजीर की एक कड़ी के नाते कोढ़ी को और उसकी सेवा के काम को मैं खास तौर पर बढ़ा रहा हूं, क्योंकि आज हमारे देश में कोढ़ियों की जो दशा है, वही दशा आजकल की सुधरी हुई दुनिया में हमारी है, बशर्ते कि हम अपने आसपास ठीक से गौर करके देखें। समुौ पार के अपने देशबन्धुओं की दशा का विचार करने से सबको मेरी इस बात की सच्चाई का विश्वास हो जायेगा।

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