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13. आर्थिक समानता

रचनात्मक काम का यह अंग अहिंसापूर्ण स्वराज्य की मुख्य चाबी है। आर्थिक समानता के लिए काम करने का मतलब है, पूंजी और मजदूरी के बीच के झगड़ों को हमेशा के लिए मिटा देना। इसका अर्थ यह होता है कि एक ओर से जिन मुट्ठीभर पैसेवाले लोगों के हाथ में राष्ट्र की संपत्ति का बड़ा भाग इकट्ठा हो गया है उनकी संपत्ति को कम करना और दूसरी ओर से जो करोड़ों लोग अधपेट खाते और नंगे रहते हैं उनकी संपत्ति में वृद्धि करना। जब तक मुट्ठीभर धनवानों और करोड़ों भूखे रहनेवालों के बीच बेइन्तहा अन्तर बना रहेगा, तब तक अहिंसा की बुनियाद पर चलनेवाली राज-व्यवस्था कायम नहप हो सकती। आजाद हिन्दुस्तान में देश के बड़े-से-बड़े धनिकों के हाथ में हुकूमत का जितना हिस्सा रहेगा उतना ही गरीबों के हाथ में भी होगा; और तब नई दिल्ली के महलों और उनकी बगल में बसी हुई गरीब मजदूर बस्तियों के टूटे-फूटे झोंपड़ों के बीच जो दर्दनाक फर्क आज नजर आता है, वह एक दिन को भी नहप टिकेगा। अगर धनवान लोग अपने धन को और उसके कारण मिलनेवाली सत्ता को खुद राजी-खुशी से छोड़कर और सब के कल्याण के लिए सबके साथ मिलकर बरतने को तैयार न होंगे, तो यह तय समझिये कि हमारे देश में हिंसक और खूंख्वार क्रांति हुए बिना न रहेगी।

ट्रस्टीशिप या सरपरस्ती के मेरे सिद्धान्त का बहुत मजाक उड़ाया गया है, फिर भी मैं उस पर कायम हूं। यह सच है कि उस तक पहुंचने यानी उसका पूरागपूरा अमल करने का काम कठिन है। क्या अहिंसा की भी यही हालत नहप? फिर भी 1920 में हमने यह सीधी चढ़ाई चढ़ने का निश्चय किया था। अब तक हमने उसके लिए जो पुरुषार्थ किया है वह कर लेने जैसा था, इसे अब हम समझ चुके हैं। इस पुरुषार्थ की खास बात यह है कि रोज-रोज की खोज और कोशिश से हमें अधिकाधिक यह जान लेना है कि अहिंसा का तत्त्व किस तरह काम करता है। कांग्रेसवालों से यह उम्मीद की जाती है कि वे सब संजीदगी और लगन के साथ, सचेत रहकर, इस बात का पता लगायें कि अहिंसा क्या चीज है, क्यों उसका व्यवहार करना है, और वह किस तरह अपना काम करती है। सबको इस सवाल पर भी सोचना है कि आज की सामाजिक व्यवस्था में मनुष्य-मनुष्य के बीच जो तरह-तरह की असमानताएं मौजूद हैं, वे हिंसा से दूर होंगी या अहिंसा से। मेरे खयाल में हिंसा का रास्ता कैसा है, यह हम जानते हैं। उस रास्ते समानता के मामले में कहप सफलता मिली हमने जानी नहप।

अहिंसा के जरिये समाज में हेरफेर करने के प्रयोग अभी चल रहे हैं, और उनकी तफंसील तैयार हो रही है। इन प्रयोगों में प्रत्यक्ष दिखाने जैसा तो कोई खास या बड़ा काम हमने किया नहप है। मगर यह तय है कि चाल चाहे कितनी ही धीमी क्यों न हो, फिर भी इस तरीके पर समानता की दिशा में काम तो शुरू हो चुका है। और चूंकि अहिंसा का रास्ता हृदय-परिवर्तन का रास्ता है, इसलिए उसमें जो भी हेरफेर होते हैं वे कायमी होते हैं। जिस समाज या राष्ट्र की रचना अहिंसा की नपव पर हुई है, वह अपनी इमारत पर होनेवाले तमाम बाहरी या अन्दरूनी हमलों का सामना करने की ताकत रखता है। राष्ट्रीय कांग्रेस में धनवान कांग्रेसी भी हैं। इस मामले में पहल करके उन्हें औरों को रास्ता दिखाना है। स्वराज्य की हमारी यह लड़ाई हरएक कांग्रेसी को इस बात का मौका देती है कि वह अपने दिल की पूरी गहराई में उतरकर अपने आपको जांचेगपरखे। अपनी लड़ाई के अन्त में हमें जिस हिन्दुस्तान की रचना करनी है, उसमें यदि समानता को सिद्ध करना हो, तो उसकी बुनियाद अभी से पड़नी चाहिये। जो लोग यह समझकर चलते हैं कि बड़े-बड़े सुधार तो स्वराज्य कायम होने पर ही होंगे या किये जायेंगे, वे सब जड़ से ही इस बात को समझने में गलती करते हैं कि अहिंसक स्वराज्य का काम किस तरह होता है। यह अहिंसक स्वराज्य किसी अच्छे मुहूर्त में अचानक आसमान से नहप टपक पड़ेगा। बल्कि जब हम सब मिलकर एक साथ अपनी मेहनत से एक-एक इऔट चुनते चलेंगे, तभी स्वराज्य की इमारत खड़ी हो सकेगी। इस दिशा में हमने काफी लम्बी और अच्छी मंजिल तय की है। लेकिन स्वराज्य की संपूर्ण शोभा और भव्यता का दर्शन करने से पहले हमको अभी इससे भी ज्यादा लम्बा और थकानेवाला रास्ता तय करना है। इसलिए हरएक कांग्रेसी को अपने आप से यह सवाल पूछना है कि इस आर्थिक समानता की स्थापना के लिए उसने क्या किया है?

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