| | |

12. राष्ट्रभाषा

समूचे हिन्दुस्तान के साथ व्यवहार करने के लिए हमको भारतीय भाषाओं में से एक ऐसी भाषा की जरूरत है, जिसे आज ज्यादा-से-ज्यादा तादाद में लोग जानते और समझते हों और बाकी के लोग जिसे झट सीख सकें। इसमें शक नहप कि हिन्दी ही ऐसी भाषा है। उत्तर के हिन्दू और मुसलमान दोनों इस भाषा को बोलते और समझते हैं। यही भाषा जब उर्दू लिपि में लिखी जाती है तो उर्दू कहलाती है। राष्ट्रीय कांग्रेस ने सन् 1925 के अपने कानपुर अधिवेशन में जो मशहूर प्रस्ताव पास किया था, उसमें सारे हिन्दुस्तान की इसी भाषा को हिन्दुस्तानी कहा है। और तब से सिद्धान्त में ही क्यों न हो, हिन्दुस्तानी राष्ट्रभाषा मानी गई है। `सिद्धान्त में` मैंने जान-बुझकर कहा है। क्योंकि खुद कांग्रेसवालों ने भी इसका जितना अभ्यास करना चाहिये नहप किया। हिन्दुस्तान की आम जनता की राजनीतिक शिक्षा के लिए हिन्दुस्तान की भाषाओं के महत्त्व को पहचानने और मानने की एक खास कोशिश सन् 1920 में शुरू की गई थी। इसी हेतु से इस बात का खास प्रयत्न किया गया था कि सारे हिन्दुस्तान के लिए एक ऐसी भाषा को जान और मान लिया जाय, जिसे राजनीतिक दृष्टि से जागा हुआ हिन्दुस्तान आसानी से बोल सके और अखिल भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के आम जलसों में इकट्ठे होनेवाले हिन्दुस्तान के अलग अलग प्रान्तों से आये हुए कांग्रेसी समझ सकें। इस राष्ट्रभाषा को हमें इस तरह सीखना चाहिये, जिससे हम सब इसकी दोनों शैलियों को समझ और बोल सकें और इसे दोनों लिपियों में लिख सकें।

मुझे अफसोस के साथ कहना पड़ता है कि बहुत से कांग्रेसजनों ने इस ठहराव पर अमल नहप किया। मेरी समझ में इसका एक शर्मनाक नतीजा यह हुआ है कि आज भी अंग्रेजी बोलने का आग्रह रखनेवाले और अपने समझने के लिए दूसरों को अंग्रेजी में ही बोलने के लिए मजबूर करनेवाले कांग्रेसजनों का बेहूदा दृश्य हमें देखना पड़ता है। अंग्रेजी भाषा ने हम पर जो मोहिनी डाली है, उसके असर से हम अभी तक छूटे नहप हैं। इस मोहिनी के वश होकर हम लोग हिन्दुस्तान को अपने ध्येय की ओर आगे बढ़ने से रोक रहे हैं। जितने साल हम अंग्रेजी सीखने में बरबाद करते हैं उतने महीने भी अगर हम हिन्दुस्तानी सीखने की तकलीफ न उठायें, तो सचमुच कहना होगा कि जन-साधारण के प्रति अपने प्रेम की जो डपगें हम हांका करते हैं वे निरी डपगें ही हैं।

| | |