| | |

11. प्रान्तीय भाषाएं

हमने अपनी मातृभाषाओं के मुकाबले अंग्रेजी से ज्यादा मुहब्बत रखी, जिसका नतीजा यह हुआ कि पढ़ेगलिखे और राजनीतिक दृष्टि से जागे हुए ऊंचे तबके के लोगों के साथ आम लोगों का रिश्ता बिलकुल टूट गया और उन दोनों के बीच एक गहरी खाई बन गई। यही वजह है कि हिन्दुस्तान की भाषाएं गरीब बन गई हैं, और उन्हें पूरा पोषण नहीं मिला। अपनी मातृभाषा में दुर्बोध और गहरे तात्त्विक विचारों को प्रकट करने की अपनी व्यर्थ चेष्टा में हम गोते खाते हैं। हमारे पास विज्ञान के निश्चित पारिभाषिक शब्द नहीं हैं। इस सबका नतीजा खतरनाक हुआ है। हमारी आम जनता आधुनिक मानस यानी नये जमाने के विचारों से बिलकुल अछूती रही है। हिन्दुस्तान की महान भाषाओं की जो अवगणना हुई है और उसका कोई अंदाजा या माप आज हम निकाल नहीं सकते, क्योंकि हम इस घटना के बहुत नजदीक हैं। मगर इतनी बात तो आसानी से समझी जा सकती है कि अगर आज तक हुए नुकसान का इलाज नहीं किया गया, यानी जो हानी हो चुकी है उसकी भरपाई करने की कोशिश हमने न की, तो हमारी आम जनता को मानसिक मुक्ति नहीं मिलेगी, वह रूढ़ियों और वहमों से घिरी रहेगी। नतीजा यह होगा कि आम जनता स्वराज्य के निर्माण में कोई ठोस मदद नहीं पहुंचा सकेगी। अहिंसा की बुनियाद पर रचे गये स्वराज्य की चर्चा में यह बात शामिल है कि हमारा हरएक आदमी आजादी की हमारी लड़ाई में खुद स्वतंत्र रूप से सीधा हाथ बंटाये। लेकिन अगर हमारी आम जनता लड़ाई के हर पहलू और उसकी हर सीढ़ी से परिचित न हो और उसके रहस्य को भलीभांति न समझती हो, तो स्वराज्य की रचना में वह अपना हिस्सा किस तरह अदा करेगी? और जब तक सर्व-साधारण की अपनी बोली में लड़ाई के हर पहलू व कदम को अच्छी तरह समझाया नहीं जाता, उनसे यह उम्मीद कैसे की जाय कि वे उसमें हाथ बंटायेंगे?

| | |