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8. बड़ों की तालीम

कांग्रेसजनों ने इस काम की तरफ नहीं के बराबर ध्यान दिया है। जहां उन्होंने इस दिशा में थोड़ा-बहुत काम किया है, वहां अनपढ़ों को थोड़ा पढ़ना-लिखना सिखाकर ही संतोष माना है। अगर बड़ी उमर के स्त्राh-पुरुषों को तालीम देने या पढ़ाने का काम मेरे जिम्मे हो, तो मैं अपने विद्यार्थियों को अपने देश के विस्तार और उसकी महत्ता का बोध कराकर उनकी पढ़ाई शुरू करूं। हमारे देहातियों के खयाल में उनका गांव ही उनका समूचा देश होता है। जब वे किसी दूसरे गांव को जाते हैं तो इस तरह बात करते हैं, मानो उनका अपना गांव ही उनका समूचा देश या वतन हो। `हिन्दुस्तान` तो उनके खयाल से भूगोल की किताबों में बरता जानेवाला एक शब्दमात्र है। हमारे गांवों में कितना घोर अज्ञान घुसा हुआ है, इसका हमें अंदाज तक नहीं है। हमारे देहाती भाई और बहन नहीं जानते कि इस देश में जो विदेशी हुकूमत चल रही है, उसका देश पर कितना बुरा असर हुआ है। इधर-उधर से जो थोड़ी बातें वे जान पाते हैं, उनकी वजह से उनके दिल पर अपने परदेशी हाकिमों की धाक जम गई है। इसलिए वे परदेशियों से और उनकी हुकूमत से डरते हैं, लेकिन मन-ही-मन उसे धिक्कारते भी हैं। वे नहीं जानते कि इस हुकूमत के पंजे से, इसकी बला से, कैसे छूटा जाय। फिर, उन्हें इस बात का भी तो खयाल नहीं कि विदेशियों की जो हुकूमत यहां कायम है, उसका एक कारण उनकी अपनी कमजोरियां और खामियां भी हैं; और दूसरे, वे यह भी नहीं जानते कि इस परदेशी हुकूमत की बला को दूर करने की ताकत खुद उनमें है। इसलिए बड़ी उमर के अपने देशवासियों की शिक्षा का सबसे पहला अर्थ मैं यह करता हूं कि उन्हें जबानी तौर पर यानी सीधी बातचीत के जरिये सच्ची राजनीतिक तालीम दी जाय। यह तालीम किस सिलसिले से और किस तरह दी जाय, इसका एक नक्शा या खाका पहले से ही तैयार रहेगा, ताकि इसके देने में किसी तरह का डर या अन्देशा रखने की जरूरत न हो। मैं मानता हूं कि अब वह जमाना लद गया है, जब इस तरह की तालीम के काम में सरकारी अफसरों की तरफ से दस्तन्दाजी हुआ करती थी। लेकिन मान लीजिये कि ऐसी दस्तन्दाजी हो, तो अपने भाईगबहनों को इकट्ठा करके बातचीत के जरिये उन्हें सच्ची तालीम देने के इस बिलकुल बुनियादी हक की अदाई के लिए हमें लड़ ही लेना चाहिये। क्योंकि इस बुनियादी हक के बिना स्वराज्य मिल ही नहीं सकता। इसमें शक नहीं कि इस तालीम के बारे में मैंने यहां जो भी सलाह दी है, उसमें मैंने यह मान लिया है कि सारा काम खुलेआम होगा। अहिंसा के तरीके में डर की जरा भी गुंजाइश नहीं, और इसलिए छिपाव को भी कोई जगह नहीं। इस जबानी तालीम के साथ ही साथ लिखने-पढ़ने की तालीम भी चलेगी। इसके लिए खास लियाकत की जरूरत है। इस सिलसिले में पढ़ाई के वक्त को भरसक कम करने के खयाल से कई तरीके आजमाये जा रहे हैं। मेरी सिफारिश यह है कि कांग्रेस की कार्यसमिति को इस काम के विशेषज्ञ माने जानेवाले लोगों की एक ऐसी स्थायी या कामचलाऊ कमेटी मुकर्रर करनी चाहिये, जो यहां प्रकट किये गये मेरे विचारों को और बड़ों की तालीम के तरीके पर जाहिर किये गये मेरे खयालों को किसी निश्चित योजना में शामिल करके कार्यकर्ताओं को रास्ता दिखाये। मैं कबूल करता हूं कि इस छोटे से पैरे में मैंने जो कुछ कहा है, उससे सिर्फ काम की दिशा प्रकट हुई है। किन्तु साधारण कांग्रेसजन को इससे इस बात का पूरा पता नहीं चलता कि यह काम चलाया किस तरह जाय। फिर, चूंकि इस काम के लिए खास लियाकत की जरूरत है, इसलिए हर एक कांग्रेसी इसे कर भी नहीं सकता। लेकिन जो कांग्रेसजन शिक्षा का काम करते हैं, उनके लिए यहां दी हुई सूचनाओं के अनुसार पढ़ाई का एक क्रम तैयार कर लेना मुश्किल न होना चाहिये।

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