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5. दूसरे ग्रामोद्योग

खादी के मुकाबले देहात में चलनेवाले और देहात के लिए जरूरी दूसरे धन्धों की बात अलग है। उन सब धन्धों में अपनी राजी-खुशी से मजदूरी करने की बात बहुत उपयोगी होने जैसी नहीं है। फिर उनमें से हरएक धन्धा या उद्योग ऐसा है, जिसमें एक खास तादाद में ही लोगों को मजदूरी मिल सकती है। इसलिए ये उद्योग खादी के मुख्य काम में सहायक हो सकते हैं। खादी के अभाव में उनकी कोई हस्ती नहीं, और उनके बिना खादी का गौरव या शोभा नहीं। हाथ से पीसना, हाथ से कूटना और कछोरना, साबुन बनाना, कागज बनाना, चमड़ा कमाना, तेल पेरना और इस तरह के सामाजिक जीवन के लिए जरूरी और महत्व के दूसरे धन्धों के बिना गांवों की आर्थिक रचना संपूर्ण नहीं हो सकती, यानी गांव स्वयंपूर्ण घटक नहीं बन सकते। कांग्रेसी आदमी इन सब धन्धों में दिलचस्पी लेगा, और अगर वह गांव का बाशिन्दा होगा या गांव में जाकर रहता होगा, तो इन धन्धों में नई जान फूंकेगा और इन्हें नये रास्ते पर ले जायेगा। हरएक आदमी को, हर हिन्दुस्तानी को इसे अपना धर्म समझना चाहिये कि जब-जब और जहां-जहां मिले, वहां वह हमेशा गांवों की बनी चीजें ही बरते। अगर ऐसी चीजों की मांग पैदा हो जाय, तो इसमें जरा भी शक नहीं कि हमारी ज्यादातर जरूरतें गांवों से पूरी हो सकती हैं। जब हम गांवों के लिए सहानुभूति से सोचने लगेंगे और गांवों की बनी चीजें हमें पसंद आने लगेंगी, तो पश्चिम की नकल के रूप में यंत्रों की बनी चीजें हमें नहीं जंचेंगी; और हम ऐसी राष्ट्रीय अभिरुचि का विकास करेंगे, जो गरीबी, भुखमरी और आलस्य या बेकारी से मुक्त नये हिन्दुस्तान के आदर्श के साथ मेल खाती होगी।

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