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2. अस्पृश्यता-निवारण

आज की इस घड़ी में हिन्दू धर्म से चिपटे हुए अस्पृश्यतारूपी शाप और कलंक को धो डालने की आवश्यकता के बारे में विस्तार से कुछ लिखने की जरूरत नहप। यह सच है कि इस दिशा में कांग्रेसवालों ने बहुत कुछ किया है। लेकिन मुझे अफसोस के साथ कहना पड़ता है कि ज्यादातर कांग्रेसियों ने अस्पृश्यता निवारण को, जहां तक हिन्दुओं का सम्बन्ध है, खुद हिन्दू धर्म की हस्ती के लिए लाजिमी मानने के बदले उसे एक सियासी जरूरत की चीज माना है। अगर हिन्दू कांग्रेसी यह समझकर इस काम को उठा लें कि इसी में उनकी सार्थकता है, तो `सनातनी` कहे जानेवाले उनके धर्मबन्धुओं पर जितना असर आज तक हुआ है, उससे कई गुना ज्यादा असर डालकर वे उनका हृदय-परिवर्तन कर सकेंगे। `सनातनियों` के पास उन्हें लड़ाई का जोश लेकर नहप, बल्कि अपनी अहिंसा को शोभा देनेवाली मित्रता की भावना से पहुंचना चाहिये। और खुद हरिजनों के मामले में तो हरएक हिन्दू को यह समझना चाहिये कि हरिजनों का काम उसका अपना काम है, और उसमें उसे उनकी मदद करनी चाहिये; और जिस अकुलानेवाली व भयानक अलहदगी में उन्हें रहना पड़ता है, उसमें उनके साथ शामिल होना चाहिये। ऐसा कौन है जो आज इस बात से इनकार करेगा कि हमारे हरिजन भाई-बहनों को बाकी के हिन्दू अपने से दूर रखते हैं, और इसकी वजह से हरिजनों को जिस भयावनी व राक्षसी अलहदगी का सामना करना पड़ता है, उसकी मिसाल तो दुनिया में कहप ढ़ूंढ़े भी नहप मिलेगी? यह काम कितना मुश्किल है, सो मैं अपने अनुभव से जानता हूं। लेकिन स्वराज्य की इमारत को उठाने का जो काम हमने हाथ में लिया है, उसी का यह एक हिस्सा है। और, इसमें शक नहप कि उस स्वराज्य तक पहुंचने का रास्ता सीधी चढ़ाईवाला और संकड़ा है। उस रास्ते न जाने कितनी फिसलनी चढ़ाइयां हैं और न जाने कितनी गहरी खाइयां हैं। लेकिन ठेठ चोटी पर पहुंचकर आजादी की सांस लेने के लिए हमें इन तमाम चढ़ाइयों और खाइयों को बिना डिगे, मजबूत कदम के साथ, पार करना होगा।


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