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क्षमाशील गांधीजी

महात्मा गांधी को ईश्वर पर असीम विश्वास था। उन्होंने लिखा है, जब उन्हें किसी कठिनाई पर सोचना पडता, उन्हें सदैव ईश्वर का सहारा मिलता रहा।

सत्य को रूप से, आंतरिक प्रेरणासे प्राप्त करना सदाचारण का लक्षण है। सदाचरण की साक्षात् मूर्ति गांधीजी भी सत्य की अनुभूति इसी प्रकार करते थे। इसी प्रकार उन्होंने 1922 में असहयोग आंदोलन को एकाएक बंद कर देने का, 1934 में सविनय आज्ञाविभंग करने का और 1936 में देशी राज्य संबंधी नीति का फैसला किया। उन्हें हमेशा एकाएक पए प्रकाश, नए ज्ञान का अनुभव हुआ।

गांधीजी गीता के अनन्य भक्त थे। और संसार की सभी धर्म पुस्तकों के साथ उन पर सब से अधिक असर गीता का पडा था। असल में गीता के आदर्श़ों पर व्यावहारिक आचरण करने वाले केवल गांधीजी ही हुए हैं। रेजिनाल्ड रेनाल्ड्स ने गांधीजी को ईश्वर का दीवाना लिखा हैं।

गांधीजी ने 1886 में मैट्रिक की परीक्षा पास की। घरवालों ने उन्हें आगे पढने के लिए इंग्लैंड भेजने का निश्चय किया। पर यह बात उनकी माताजी को न रूची। उन से किसी ने कह दिया कि विलायत जाकर नवयुवक बिगड जाते हैं और वहाँ कोई भी बिना मांस-मछली खाए और शराब पिए नही रह सकता। माताजी ने यह सब गांधीजी को सुनाया। गांधीजी ने कहा, ``तुम मुझ पर विश्वास रखो। मैं सौगंध खा कर कहता हूँ, मैं इन से बचूँगा``। तद्नुसार गांधीजीने मांस, मदिरा और स्त्राh से दूर रहने की प्रतिज्ञा की : तब कही माताजी ने उन्हें जाने की आज्ञा दी।

गांधीजी में एक बडी बात थी कि वह संसार में किसी को अपना शत्रु नही समझते थे। अवश्य ही वह जुल्म और अत्याचार सहन न कर सकते थे, पर अत्याचारी से उन्हें कोई दुश्मनी न थी। वह समझते थे कि अत्याचारी ने समझने की भूल की है, और जब वह समझ जायेगा, तो वह सत्य, अहिंसा और न्याय के सामने अवश्य झुक जायेगा, तथा अपनी गलती समझ कर खुद पछतायेगा।

गांधीजी जब दक्षिण अफ्रीका गये तो वहाँ के गोरे आंदोलन कर रहे थे कि, हिंदुस्थानी उस देश में प्रवेश न पा सकें। वे गांधीजी की जान के ग्राहक बने हुए थे, और जहाज के ऊपर ही उन्हें मार डालने की फिक्र में थे।

गांधीजी जैसे ही जहाज से उतरे, कुछ गोरे लडकों ने उन्हें पहचान लिया वे गांधी, गांधी, चिल्लाए। तुरन्त ही एक बडी भीड वहाँ जमा हो गई। छोकरों ने गांधीजी को रिक्षा पर न बैठने दिया और उन पर अंडे, दंडे, पत्थर बरसाना शुरू कर दिया। किसी ने उनकी पगडी भी उछाल दी। उन पर इतनी मार पडी कि वे बेहोश हो गए। किसी प्रकार एक पुलिस अधिकारी की स्त्राh ने उन्हें मारे जाने से बचाया।

इसको लेकर बडा हंगामा मचा। इंग्लैंड के स्वर्गीय लार्ड चेंबरलेन ने दक्षिण अफ्रीका के अधिकारियों को तार दिया कि गोरे आततायियों पर मुकदमा चलाया जाय। जब गांधीजी से पूछा गया तो उन्होंने काह कि ``मैं किसी पर मुकदमा नहप चाहता``। गांधीजी ने उन्हें क्षमा कर दिया।

एक दूसरी घटना दक्षिण अफ्रीका में अंगूठे की छाप देने के संबंध में महात्माजी ने वहाँ की गोरी सरकार से समझौता कर लिया। यह समझौता वहाँ के कुछ भारतीयों को न भाया। गांधीजी का एक मुवक्किल मीरआलम उनसे बिगड गया। अपने कुछ मित्रों को लेकर वह गांधीजी के डेरे पर आया, और डेरे पर उनके साथ एशियाटिक ऑफिस चला। उसका चेहरा बदला हुआ था। उसके चेहरे पर क्रोध झलक रहा था। ऑफिस कोई पाँच कदम होगा कि मीरआलम उनके पास आया और उनसे पूछा

``कहाँ जा रहे हो``

गांधीजी ने जवाब दिया

``दसों उंगलियों की छाप देखकर परवाना निकलवाना चाहता हूँ। तुम भी चलोगे``

गांधीजी के शब्द सुनते ही मीरआलम अपने क्रोध को काबू में न रख सका। उसने गांधीजी के सिर पर लाठी चलाई। गांधीजी ``हे राम`` कह कर गिर पडे। वह बेहोश हो गए पर फिर भी मीरआलम और उसके साथियों ने और भी लाठियाँ और जूतें लात लगाए। चारों ओ शोर मच गया, बहुत से राहगीर इकठ्ठे हो गए। मीरआलम और उनके साथी भागे, मगर गोरों ने उन्हें पकड लिया। तब तक पुलिस भी आ गई उन्हें हिरासत ले गई।

सेवा सुश्रषा के बाद अच्छे होते ही गांधीजी ने पहला काम यह किया कि सरकारी वकील को इस आशय का तार दिया कि मीरआलम और उसके साथी ने उस पर जो हमला किया है, उसके लिए गांधीजी उन्हें दोषी समझछते। मीरआलम और उसके साथी गांधीजी के कहने पर छोड दिये गए।

गांधीजी जब दक्षिण अफ्रीका से अपना काम खतम कर हिंदुस्तान आए, तो उन्हें इस देश की दुर्दशा देख कर बहुत दुख हुआ। उन्होंने सर्वप्रथम संदेश जो भारतवासियों को दिया वह था ``डरो नही``। डर कायरता की निशानी है, और कायरता मनुष्य की अंतिम दुर्दशा हैं। उस समय हर भारतवासी डरा-डरासा रहता था। पुलिस और गोरों को देखकर वह थर-थर कांपने लगता था। बडे से बडे हिंदुस्तानी भी अंग्रेजों से भय खाते और हर प्रकार के अत्याचार सहन कर लेते थे। पंडित जवाहरलालजी ने कहा है कि, ``महात्माजी के इस मंत्र `डरो नही` ने हिंदुस्तानियों में जान पूँष्क दी और आज सभी जानते हैं कि इसी मंत्र को अपनाने से देश की कायापालट हो गई है।

एक घटना है गांधीजी की निर्भयता की। चंपारन (बिहार) में निलहे साहबों के अत्याचार के विरूद्ध, गांधीजी के नेतृत्व में सत्याग्रह चल रहा था। गोरे लोग तरह-तरह के अत्याचार कर रहे थे, और गांधीजी के प्रति क्रोध से पागल हो गए थे।

वे समझते थे कि वह काला, दुबला पतला आदमी उनकी 108 वर्षें की सत्ता को पलट रहा और उनके गुलाम किसानों को भडका रहा है। गांधीजी का कायदा यह था कि कोई भी काम करने के पहले शत्रु से भी बातचीत करके समझौता कर लेना पसंद करते थे। वह अपनी माँग कम से कम रखते थे, पर उससे फिर डिगते न थे।

गांधीजी ने किसानों की शिकायतों की पूरी सूची बनाई और उसे लेकर निलाह साहब के बंगले में बातचीत करने चले। उसे सूचना पहले ही दे दी, गांधीजी के साथ बहुत भीड चलने लगी, और साहब के बंगले तक पहुँचते पहुँचते हजारों आदमी इकट्टा हो गए। साहब ने समझा कि भीड, उस पर हमला करने आ रही है। अतः वह अपनी बंदूक तानकर बंगले के बरांडे में बैठ गया, और गांधीजी का इंतजार करने लगा कि भीड के आते ही उसको गोली मार कर भगा दिया जाय।

गांधीजी ने रंग देखा, पहचाना। भीड को उन्होंने बंगले के फाटक पर रोक दिया। और आप अकेले निर्भीक होकर साहब से मिलने चल दिए। साहब भी चकराया और उसने सोचा कि यह दुबला पतला निहत्था आदमी अकेला मेरा क्या कर सकता है। उसने बंदूक नीचे रख दी और गांधीजी से बातचीत की। गांधीजी की आत्मशक्ति और सच्चाई ने साहब पर विजय पाई। चंपारन का सत्याग्रह हिंदुस्तान में गांधीजी का सर्वप्रथम अहिंसात्मक आंदोलन था, और अपनी निर्भीयता तथा सच्चाई से वह पूर्णरूप से सफल हुआ।

ऐसी एक दूसरी घटना सितंबर 1946 में नौखाली जिले में मुसलमानों ने हिंदुओं पर भयंकर अत्याचार किए। हजारों घर जला डाले, माल लूट लिया, सैकडों लोगों को जान से मार डाला, हजारों को जबरदस्ती मुसलमान बनाया। खुले आम अत्याचार हुए। किसी हिंदू की वहाँ जाने की हिम्मत न होती थी। फौज बलवा शांत करने में लगी थी, पर हिंदू नेताओं का वहाँ पहुँचना खतरे से खाली न था। एकाएक गांधीजी ने वहाँ जाने का निश्चय किया और वे अपने कुछ साथियों के साथ वहाँ पहुच गए। अपनी रक्षा के लिए मदद लेने से उन्होंने इनकार कर दिया। अकेले ही पग पग चल कर और गाँव गाँव पैदल घूम घूम कर वह मुसलमानों को शांति का संदेश सुनाने लगे। हिंदुओं से उन्होंने कहा ``डरो नहप,`` मुसलमानों से कहो कि ``हिंदूगमुसलमान भाई भाई है`` और उन्होंने जो महान अत्याचार किया है, उस पर प्रायश्चित करना चाहिए।

सारा संसार आश्चर्यचकित था। सरकार कांग्रेस के नेता गांधीजी की रक्षा के लिए चिंतित थी। गांधीजी की पदयात्रा से, निभZिकता से हिंदुओं का डर कम हुआ, मुसलमान अपने अत्याचारों पर पछताने लगे। पूरा संसार गांधीजी की शांतिदूत नाम से सराहना करने लगा।

 

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