बालमित्रोंसे |
पिछले बारह बरससे गुजरातके बालक इस पुस्तकको बड़े चावके साथ पढ़ते आ रहे हैं। बारह बरस पहले श्री जुगतरामभाईने इसे गुजरातके हमारे बालमित्रोके लिए लिखा था। उन्हीं दिनोंमें मैंने इसका एक अनुवाद किया था, जो बादमें कहीं लापता हो गया। बारह साल बाद अबको मुझे मौका मिला और मैंने इसका दुबारा अनुवाद किया। पुस्तक आपके हाथमें है। आप इसे पढ़िये। उत्साह और उमंगके साथ पढ़िये। बार-बार पढ़िये और पढ़कर गांधीजीके जीवनको समझनेकी कोशिश कीजिये। ईश्वर करे, पूज्य गांधीजीके जीवनकी ये झाँकियाँ हममें से हरएकको ऊँचा उठाने और आगे बढ़नेवाली हों। गांधी-सप्ताह काशिनाथ त्रिवेदी 2-10-1941 |