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49. अंग्रेजोंसे

गांधीजीने हिन्द स्वराज्य नामकी एक किताब लिखी है । उसमें उन्होंने स्वराज्यके बारेमें अपने विचार बहुत विस्तारसे समझाये हैं । किताब सम्पादक और पाठकके बीच हुई एक बातचीतके ढंग पर लिखी गई है ।

पाठक पूछता हैः 'अंग्रेजोंसे आप क्या कहेंगे?'

हम भी यही सवाल पूछना चाहते हैं ।

सम्पादक की हैसियतसे गांधीजीने इस सवालका नीचे लिखा जवाब दिया है । इस जवाबसे हमें गांधीजीके विचारोंको समझनेका मौका मिलता है ।

सम्पाद कहता हैः

मैं उनसे (अंग्रेजींसे) निहायत नरमीके साथ कहूँगा कि आप हमारे राजा जरूर हैं । अपनी तलवारके जोरसे हैं या हमारी मरजीसे, इस सवालकी बहसमें पड़नेकी मुझे कोई जरूरत नहीं है। आप मेरे देशमें रहना चाहें, रहें, मुझे आपसे कोई दुश्मनी नहीं । लेकिन राजा होते हुए भी रिआयाके सामने तो आपको नौकरकी तरह ही रहना होगा । आपका हुक्म हमें नहीं, बल्कि हमारा हुक्म आपको मानना होगा ।

अब तक आप यहाँसे जो धन ले गये, सो तो आप हजम कर गये, लेकिन अब आगे न हो सकेगा ।

आप हिन्दुस्तानकी रखवालीके लिए यहाँ रहना चाहें, तो रह सकते हैं । लेकिन हमारे साथ व्यापार करके हमें लूटनेका लालच तो आपको छोड़ ही देना होगा ।

आप जिस सभ्यताके हामी हैं, हम उसे सभ्यता ही नहीं समझते । अपनी सभ्यताको हम आपकी सभ्यतासे कहीं अच्छी समझते हैं । आप भी इसको समझ लें तो आपका फायदा ही है । लेकिन अगर आपको यह न सूझे, तो भी आप ही की एक कहावतके मुताबिक आपको हमारे देशमें देशी बनकर रहना चाहिये ।

आपको ऐसा कोई काम न करना चाहिए, जो हमारे धर्ममें रूकावट डाले । हाकिमकी हैसियतसे आपका फर्ज है कि आप हिन्दुओंके खातिर गायका और मुसलमानोंके खातिर सुअरका माँस खाना छोड़ दें । अब तक हम दबे हुए थे, इससे कुछ कह नहीं पाये, लेकिन आप यह न समझिये कि हमारे दिल दुखे नहीं हैं । हम अपनी खुदगर्जी और अपने दब्बूपनसे अब तक कुछ कह नहीं सके, लेकिन अब तो कहना हमारा फर्ज हो गया है ।

हम मानते हैं कि आपके खोले हुए मदरसे और आपकी अदालतें हमारे किसी कामकी नहीं। उनके बदले हमें अपनी असली अदालतें और असली मदरसे खोलने होंगे ।

हिन्दुस्तानकी भाषा अंग्रेजी नहीं, हिन्दुस्तानी है। वह आपको सीखनी होगी और हम तो अपना सारा व्यवहार आपसे अपनी ही भाषामें रख सकेंगे ।

आप जिस तरह रेलों और फौजों पर पानीकी तरह पैसा बहाते हैं, उसे हम सह नहीं सकते । हमें उनकी कोई जरूरत नहीं मालूम होती । आपको रूसका डर होगा । हमें नहीं है । जब वे आयेंगे, हम देख लेंगे । अगर उस वक्त आप भी रहे, तो दोनों मिलकर देख लेंगे ।

हमें विलायत या यूरोपके कपडे़की जरूरत नहीं है । हम तो अपने देशमें बनी चीजोंसे अपना काम चला लेंगे । यह हो नहीं सकता कि आप एक आँख मैंचेस्टर पर रखें और दूसरी हम पर ।

जब आप समझ लेंगे कि हमारा और आपका एक ही स्वार्थ है, और उसी तरह बरतेंगे, तभी हम आपको साथ दे सकेंगे ।

मैं आपके साथ गुस्ताखीसे पेश नहीं आ रहा हूँ । मेरा मतलब साफ है । आपके पास हथियारोंकी ताकत है । जवर्दस्त जहाजी बेडा़ है । इनका मुकाबला हम इन्हीं चीजोंसे नहीं कर सकते । फिर भी ऊपर जो कुछ कहा है, वह आपको मंजूर न हो, तो हम आपके साथ रह नहीं सकते । आप चाहें, और आपसे हो सके, तो आप हमें कत्ल कर डालिये। जी चाहे तोपसे उडा़ दीजिये। लेकिन जो चीज हमें पसन्द नहीं है, उसमें हम आपकी हरगिज मदद न करेंगे, और बिना हमारी मददके आप एक कदम भी बढ़ न सकेंगे ।

मुमकिन है कि हकूमतकी मस्तीमें, सत्ताके घमण्डमें आप हमारी इस बातको हँसीमें उडा़ दें । और हो सकता है कि हम फौरन ही आपको यह न दिखा सकें कि इस तरह हँसना बेकार है । लेकिन अगर हममें ताकत होगी, तो आपकी यह मस्ती निकम्मी थी, और हँसी उलटी अक्लकी निशानी थी ।

हम मानते हैं कि दिलसे आप भी एक ऐसी कौमके लोग हैं, जो धर्मको मानती है । हम तो धर्मभूमिके ही निवासी हैं । आपका हमारा साथ कैसे हुआ, जिसकी बहसमें पड़ना फिजूल है । लेकिन अपने इस सम्बन्धका उपयोग हम अच्छे काममें कर सकते हैं । जो अंग्रेज हिन्दुस्तानमें आते हैं, वे अंग्रेजी प्रजाके सच्चे नुमाइन्दे या प्रतिनिधी नहीं होते । इस तरह हम लोग भी, जो आधे अंग्रेज बन गये हैं, अपनेको हिन्दुस्तानकी असली प्रजाके सच्चे प्रतिनिधि नहीं कह सकते । अगर विलायतके अंग्रेजोंको हिन्दुस्तानकी हुकूमतका कच्चा चिठ्ठा मालूम हो जाय, तो वे  जरूर आपका विरोध करेंगे । हिन्दुस्तानके लोगोंने तो आपके साथ नाममात्रका ही सम्बन्ध रक्खा है ।

अगर आप अपनी सभ्यताको, जो दरअसल सभ्यता नहीं है, छोड़ देंगे और अपने धर्मका विचार करेंगे, तो आप खुद महसूस करेंगे कि हमारी माँग बाजिब और मुनासिब है । इसी तरह आप हिन्दुस्तानमें रह सकते हैं ।

अगर आप इस तरह रहेंगे, तो हमें आपसे जो कुछ सीखना है, हम सीखेंगे, और हमसे आपका जो बहुत-कुछ सीखना है, आप सिखियेगा । इस तरीकेसे हम दोनों फायदेमें रहेंगे और दुनियाको भी फायदा पहुँचायेंगे । लेकिन यह होगा तभी, जब हमारा और आपका सम्बन्ध धर्मकी नींव पर कायम किया जायगा – उसकी तहमें धर्म होगा ।

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