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48. स्वराज्य

हिन्दुस्तानके दादा मरहूम (स्वर्गीय) दादाभाई नौरोजीने देशके सामने स्वराज्यका मंत्र रक्खा ।

स्वर्गीय लोकमान्य तिलकने उसे गाँव-गाँव और घर-घर पहुँचाया ।

गांधीजीने गाँव-गाँवमें और घर-घरमें स्वराज्यके लिए यज्ञ शुरू कराया – कुर्बीनीका सिलसिला चलाया ।

हिन्दुस्तानके दादाने किताबोंको मथ-मथकर यह पता लगाया कि इस मुल्ककी बडी़से बडी़ बीमारी मूख है ।

तिलक महाराजने छः साल तक जेलके अन्दर बन्द रहकर देशवालोंको यह सिखाया कि स्वराज्य ही इस भूखको मिटा सकता है ।

अब गांधीजी अपनी तपस्यासे देशको एक नया पाठ, नया सबक सिखा रहे हैं । वे कहते हैं – 

'देश की बीमारी स्वराज्यसे ही मिटेगी, और स्वराज्य खादीसे ही मिलेगा ।'

यह न समझो कि स्वराज्यकी लडा़ई बडे़-बड़े लड़वैये ही लड़ सकते हैं । नहीं, छोटे-छोटे बच्चे भी उसमें सिपाहीका काम कर सकते हैं । अगर तुम स्वराज्यकी सेनाके सिपाही बनना चाहते हो, तो नीचे लिखे काम करनेका निश्चय कर लो और स्वराज्यके सैनिक बन जाओ ।

1. विदेशी कपडा़ पहनना छोड़ दो, और शुद्ध खादी पहनने लगो ।

2. देशकी आजादीके लिए रोज सूत कातो ।

3. गुलामीको बढा़नेवाली तालीमसे परहेज करो । ऐसी तालीम लो, ऐसे मदरसोंमें पढो़, जहाँ पढ़नेसे दिलमें देशभक्तिके भाव पैदा हों ।

4. अपनी मातृभाषा (मादरी जबान) और राष्ट्रभाषा (कौम जबान) को अच्छी तरह सीखो । अंग्रेजीको पराई माँ समझो, और उसके दूधकी ज्यादा उम्मीद न रक्खो ।

5. यह समझ लो कि हमारा हिन्दुस्तान गाँवोंका देश है, जिसमें लाखों गाँव हैं, और गाँवोंमें गरीबीका पार नहीं है । इन गाँवोंसे प्रेम करना सीखो । गाँवोंमें जाकर बसनेके सपने देखो। गाँवकी बनी हुई चीजोंका उपयोग अभिमानके साथ करो ।

6. हरिजनोंके बच्चोंको अपने पास प्रेमसे बैठने और पढ़ने दो । अगर हम चाहते हैं कि हमें स्वराज्य मिले, तो हमारा फर्ज है कि हम सबसे पहले हरिजनोंको पूरा-पूरा स्वराज्य दे दें ।

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