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47. महान् उपवास

गांधीजीने हिन्दुओं और मुसलमानोंको बहुतेरा समझाया, लेकिन वे लड़नेसे बाज न आये ।

गांधीजीने कहाः 'भाइयो, हम एक ही देशकी सन्तान हैं । हमें लड़ना न चाहिए ।'

लेकिन लडा़ई मिटी नहीं ।

गांधीजीने फिर कहाः 'सोचो तो, हमारे बाप-दादे किस तरह मिल-जुलकर रहते थे ।'

तो भी झगडे़ तो होते ही रहे ।

गांधीजीने समझायाः 'लड़नेमें किसीकी खानदानी नजर नहीं आती । आप लोग हिलमिलकर रहिये और लड़ना-झगड़ना बन्द कर दीजिए ।'

पर किसीने उनकी बात पर कान न दिया। लडा़ई के जोशमें खानदानियतकी परवाह कौन करे?

गांधीजीने चेतावनी देते हुए कहाः 'याद रखिये, जब तक आप एक न होंगे, आपको स्वराज्य भी नहीं मिलेगा ।'

लेकिन जहाँ दिमागमें गुस्सा भरा हो, वहाँ स्वराज्यकी बातें कौन सुनता?

गांधीजीने फिर चेताया और कहाः 'देखो, दोकी लडा़ईमें तीसरेका फायदा हो रहा है । जरा आँखें खोलकर देखो ।'

पर आँखें तो मारे गुस्सेके अन्धी हो रहा थीं । वे क्योंकर खुलतीं ?

आखिर जब गांधीजी कहते-कहते थक गये और किसीने उनकी न सुनी, तो जानते हो उन्होंने क्या किया?

बस एक दिन 21 दिनके उपवासका कठिन व्रत लेकर बैठ गये ।

उन दिनों गांधीजी दिल्लीमें थे और महान् मुसलमान डाक्टर अनसारीके घर रहते थे । वहीं उन्होंने अपने 21 दिनके उपनास शुरू किये । गांधीजी हँसते-हँसते भूखकी पीडायें सहते, और अनसारीजी गदगद भावसे उपवासी गांधीजीकी सेवा करते ।

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