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38. भाईने पीट दिया

दक्षिण अफ्रीकामें मीर आलम नामका एक पठान रहता था । तोशक-तकिये, गादी-गदेले भरकर बेचना उसका पेशा था । उसीसे उनका गुजर-बसर होता था ।

मीर आलमकी गांधीजीसे अच्छी जान-पहचान थी । आफत-मुसीबतमें, काम-काजमें वह हमेशा गांधीजीकी सलाहसे चलता, और उनकी इज्जत करता था । जब गांधीजीने दक्षिण अफ्रीकामें सत्याग्रह शुरू किया तो मीर आलम भी उसमें शामिल हुआ – दिलचस्पी लेने लगा ।

सत्याग्रहके सिलसिलेमें गांधीजीको जेल जाना पडा़ । बहुतसे दूसरे हिन्दुस्तानियोंने भी बडी़ बहादुरी दिखाई और खुशी-खुशी जेल गये । आखिर सरकार झुकी और समझौता हुआ । कुछ लोगोंको यह समझौता पसन्द नहीं आया । मीर आलम उन्हींमें था । वह गांधीजी पर बहुत गुस्सा हुआ ।

अफ्रीकामें उन दिनों एक बहुत ही खराब और अपमानजनक कानून बना था इस कानूनके अनुसार वहाँके सभी हिन्दुस्तानियोंको सरकारी परवाने लेने पड़ते थे और उन परवानों पर अपनी दसों अँगुलियोंकी छाप देनी पड़ती थी । वे परवाने हरएक को रात-दिन अपने पास रखने पड़ते थे । जिसके पास परवाना न होता, उसे सजा ठुक जाती । ऐसा मनहूस यह कानून था । हिन्दुस्तानियोंने इसी कानूनके खिलाफ सत्याग्रह छेडा़ था । समझौतेमें यह तय पाया कि जो चाहे परवाना ले, न चाहे, न ले ।

सत्याग्रहकी जीत हुई । सरकारने गांधीजीको जेलसे रिहा कर दिया । दूसरे सब सत्याग्रही भी छोड़ दिये गये । इसके बाद इस जीतकी खुशीमें एक जलसा हुआ ।

जलसेमें मीर आलम भी मौजूद था । उसने खडे़ होकर पूछाः 'इसमें हमारी जीत क्या हुई? परवाना लेनेकी बात तो कायम ही रही न?'

गांधीजीने समझाते हुए कहाः 'जो न लेना चाहे, न ले । इतनी आजादी जिसमें रखी गई है । आप न चाहें, न लें ।'

'और आप?'

'मैं तो सबसे पहले लूँगा और दसों अँगुलियोंकी छाप भी दूँगा ।'

'लोगोंको शक है कि आप सरकारसे पैसा खा गये हैं । आपने रिश्वत ली है । मैं कहता हूँ, यह गलत है । इसे कोई न माने ।'

'अच्छी बात है, बन्दा भी खुदाकी कसम खाकर कहता है कि जो अव्वल परवाना लेने जायगा, वह मेरे हाथों मौत पायगा ।'

गांधीजीने कहाः 'अपने भाईके हाथों मरनेमें मुझे खुशी ही होगीः मगर मैं सच्चाईसे हरगिज न हटूँगा ।'

इसके कोई तीन महीने बादका किस्सा है । परवाना लेनेकी तारीख नजदीक आ लगी ।

गांधीजी और दूसरे साथी नेताओंने यह तय कर लिया था कि वे सबसे पहले परवाने लेने जायँगे ।

मीर आलम भी अपनी बात भूला न था । गुस्सेसे बेताब होकर वह मन ही मन बोल उठाः 'देखूँगा, वे कैसे परवाने लेते हैं ।' इसके बाद अपने दो-तीन पठान दोस्तोंको साथ लेकर वह एक जगह रास्ता रोककर खडा़ हो गया ।

गांधीजी उधरसे गुजरे । मीर आलमका दस्तूर था कि जब कभी गांधीजीसे मिलता, बडे़ अदबके साथ उन्हें सलाम करता । उसके दिलमें उनके लिए बडी़ इज्जत थी । लेकिन आज वह फिरण्ट रहा । सलाम नहीं किया । गांधीजीने उसकी आँखों को देखा, तो ताड़ गये कि खून सवार है, जरूर कोई अनहोनी होगी ।

जब पठान चुप रहा, तो गांधीजीने खुद मुस्कराते हुए पूछाः 'कहो भाई मीर आलम, कैसे हो?' उसने उसी तावमें सर झुकाते हुए कहाः 'अच्छा हूँ ।'

समय होते ही गांधीजीका दल परवाना लेने चला । मीर आलम भी अपने दोस्तोके साथ उनके पीछे हो लिया । जब आफिस कुछ ही दूर रह गया, तो मीर आलम लपककर गांधीजीके सामने जा पहुँचा और बोलाः 'कहाँ जाते हो?'

दसों अँगुलियोंकी छाप देने और परवाना लेने । चाहो, तुम भी चलो। तुम्हें अँगुलियोंकी छाप न देनी होगी ।

इसी वक्त पीछेसे किसीने कसकर लाठी तौली और वह खटाक् गांधीजीकी खोपडी़ पर आकर गिरी । पहले ही वारमें गांधीजी गश खा गये, और जमीन पर गिर पडे़ । बेहोशीकी हालतमें भी पठान उन्हें डण्डों और लातोंसे मारते रहे । गांधीजीके साथ दूसरे नेता थे, उन्होंने बीचबचावकी कोशिश की, तो वे भी बेहतर पिटे । यों मार-पीटकर पठानोंने रास्ता नापा, लेकिन राहगीरोंने उन्हें पकड़ लिया और पुलिसमें दे दिया ।

बेहोशीकी हालतमें लोग गाधीजीको उठाकर पासके एक मकानमें ले गये । वहाँ वे सुलाये गये और उनकी मरहम-पट्टी हुई । उनका एक होंठ फट गया था, दाँतमें चोट पहुँची थी और पसलियोंमें दर्द हो रहा था ।

कुछ देर बाद जब होश आया तो जानते हो, पहला सवाल गांधीजीने क्या पूछा?

मीर आलम कहाँ है?

एक सेवकने कहाः 'आप आराम कीजिए । मीर आलमको और उसके साथियोंको पुलिस पकड़कर ले गयी है ।

गांधीजी चौंक पडे़ । उन्होंने कहाः 'नहीं, उन लोगोंको तुरन्त छुडा़ना चाहिये ।' और उन्होंने उसी दम पुलिस अफसरको एक चिट्ठी लिखी और उनसे प्रार्थना की वे उन पठान भाईयोंको छोड़ दे । गांधीजी नहीं चाहते थे कि उन्हें सजा हो ।

गांधीजीकी चिट्ठी पाकर पुलिस अफसरने मीर आलमको और उसके साथियोंको रिहा कर दिया । लेकिन बादमें जब वहाँके गोरोंने हायतोबा मचाई, तो पुलिसने उन्हें फिर गिरफ्तार कर लिया और छः महीनोंकी सजा ठोकं दी।

इस मार-पीटमें गांधीजीके अगले दाँत गये । वह गड्ढा आज भी उनके मुँहकी शोभा बढा़ रहा है । माईका दिया हुआ, प्रेमसे सहा हुआ, और सत्यकी रक्षामें मिला हुआ वह एक उपहार है – तोहफा है ।

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