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37. धक्का

प्रिटोरियामें गांधीजी रोज शामको घरसे हवाखोरीके लिए निकलते और खुले मैदानमें टहलकर लौट आते ।

सड़कके किनारे, दोनों ओर पैदल चलनेवालोंके लिए पक्का रास्ता बना था । गांधीजी इसी रास्ते रोज आते-जाते थे । इसी रास्ते पर प्रिटोरियाके प्रधान मंत्री मिस्टर क्रूगरका मकान था ।

एक मामूली-सा सीधा-साधा मकान, मगर दरवाजे पर सन्तरीका पहरा था । इसीसे लोग समझते थे कि किसी आला अफसरका मकान है ।

गांधीजी हमेशा इसी रास्ते जाते थे, हमेशा प्रधान मंत्री क्रूगरके घरके सामनेसे गुजरते थे, सन्तरी हमेशा उन्हें देखता था, लेकिन कभी कुछ कहता न था ।

उस दिन पता नहीं, क्या हुआ । शायद सन्तरी बदला था । नये सन्तरीने सोचाः 'अरे, यह काला कुली पटरी पर चलता है? और सो भी प्रधान मंत्रीके घरके सामने? वाह रे हिमाकत ! बच्चाको मजा चखाना चाहिये ।'

उसने आव देखा न ताव, न बोला न चाला, न चेताया, बस एकाएक आगे बढ़कर गांधीजीको एक धक्का दिया, लात मारी और प्लैटफार्मसे नीचे गिरा दिया ।

गांधीजी चौंक पडे़। यह कैसा गजब है? कैसा सितम? खडे़ होकर सिपाहीसे जवाब तलब करने ही वाले थे, कि सामनेसे एक घुड़सवार आया और बोलाः 'मिस्टर गांधी, मैंने सारी हरकत अपनी आँखों देखी है। तुम इस पर मुकदमा चलाओ, मैं गवाही दूँगा ।'

यह घुड़सवार एक गोरा था और गांधीजीका दोस्त था ।

गांधीजीने कहाः 'नहीं, इसमें मुकदमेकी क्या जरूरत है । यह जैसे हजारों हिन्दुस्तानियोंके साथ पेश आता है, वैसे ही मेरे साथ भी आया । बेचारा क्या करे?'

दोस्तने कहाः 'नहीं, यह ठीक नहीं है, इन लोगो को दुरूस्त करना ही चाहिये । गांधीजीने समझाते हुए कहाः 'भाई, जहाँ सभी गोरे हमें कुली समझते और हमसे नफरत करते हैं, तहाँ इस बेचारे नासमझ सिपाहीका क्या कसूर?'

फिर तो उस गोरे मित्रने सिपाहीको सारी हकीकत समजाई । बेचारा बहुत सिटपिटाया और आकर गांधीजीसे माफी माँगने लगा ।

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