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लँगोटी

चम्पारनमें किसानोंको निलहे गोरोंकी गुलामीसे छुडा़कर गांधीजी वहीं गाँवोंमें रहने और गाँववालोंकी सेवा करने लगे ।

एक दिन किसी गाँवमें उन्होंने कुछ औरतोंको बहुत ही गन्दी हालतमें देखा । गांधीजीने कस्तूरबासे कहा कि वे जायें और उन बहनोंको रोज नहाना और धुले हुए कपडे़ पहनना सिखायें ।

बा गई । उन्होंने उन बहनोंसे बातचीत की । समझायाः 'बहनो, आपको कपडे़ रोज धोने चाहियें । धोने-धानेमें इतनी सुस्ती न करनी चाहिये ।'

 जो बहनें गन्दे कपडे़ पहने थीं, उन्होंने कस्तूरबाको एक नजर देखा । फिर उनमें से एक बहनने कहाः 'माताजी, आप अंदर चलिये, और इस मढै़याको एक निगाह देख लीजिये ।'

बा उस बहनके साथ अंदर गई । झोंपडी़वालीने कहाः 'माताजी, आप इसे अच्छी तरह देख लीजिये । क्या इनमें कहीं कपडो़से भरी कोई सन्दूक या अलमारी नजर आती है? कुछ है ही नहीं ! बदन पर पडी़ हुई यह साडी़ ही सब कुछ है । अब बताइये, इसे कब धोऊँ, कब बदलूं. कैसे बदलूं? आप महात्माजीसे कहिये, वे मेरे लिए एकाध साडी़ और भिजवा दें ! फिर मैं रोज नहाऊँगी, रोज धुला हुआ पहनूँगी और साफ-सुथरी रहूँगी ।

गांधीजीने देशकी गरीबीको कई बार अपनी आँखों देखा था; लेकिन जब बाके मुँहसे यह दर्दभरा किस्सा सुना, तो उन्हें उस गरीबीकी गहराईका ठीक ठीक अन्दाज हो आया ।

यह गरीबी कैसे दूर हो? उस झोपडी़वालोंको एक साडी़ और दिला देनेसे ही सवाल हल नहीं हो जाता । उसके जैसी तो देशमें अनगिनत हैं – लाखों, करोडो़ !

इन सब मुसीबतोंका एक ही इलाज है – स्वराज्यः अपना राज्य ! जब गांधीजी स्वराज्यके लिए सरकारसे जूझते हैं, तो उनके दिलमें इन्हीं करोडो़ झोपडी़वाली बहनोंकी बनी रहती है ।

एक अरसा हुआ, गांधीजीने ऐसा ही एक जंग सरकारके साथ छेडा़ था । उसका खूब रंग जमा । लोगोंके जोशका ठिकाना न रहा । इसी दरमियान एक दिन खास घटना घट गई । सरकारने गांधीजीके परम मित्र और साथी मौलाना महम्मदअलीको गिरफ्तार कर लिया ।

आन-बानके इस मौके पर गांधीजीको उन गरीब और गंदगींमें रहनेवाली बहनोंकी याद फिर ताजा हो गई ! उन्होने उसी दिन यह प्रतिज्ञा की – व्रत लियाः 'जब तक इस देशमें स्वराज्यका सूरज नहीं उगता और मेरी भारतमाता की देह पूरी तरह कपडो़से नहीं ढँकती, मैं अपनी देह पर तीन तीन कपडे़ न लादूँगा ।' लाज ढँकनेको एक लँगोटीभर मेरे लिए काफी है ।

और तबसे सिर्फ लँगोटी ही पहनते हैं ।

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