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इस पार गंगा : उस पार जमुना

गोकुलके बारेमें कहा जाता है कि उसके इस पार गंगा और उस पार जमुना है, और दोनोके बीचमें गोकुलकी अपनी सुंदर बस्ती है ।

गांधीजीके आश्रमका भी यह हाल है । एक तरफ साबरमतीका जेलखाना है, और दूसरी तरफ दूधेश्वरका मन्दिर और मसान है ।

गांधीजाने आश्रमके लिए जो जगह चुनी, वह सत्याग्रहियोंकी शानको बढा़नेवाली थी । उन्हें न तो जेलका डर रहता है, न मौतका खौफ ! दोनों चीजें उन्हे एकसी प्यारी हैं, और दोनों उनकी पडो़सिन हैं ।

जेलकी तरफ इशारा करके गांधीजी आश्रमवालोंसे अकसर कहतेः 'किसी दिन हमें भी वहाँ रहने जाना है । इसलिए जैसी कडी़ जिन्दगी जेलमें कैदियोंको बितानी पड़ती है, वैसी यहाँ बिताना सीख लो।' दूधेश्वरको दिखाकर वे कहतेः 'जहाँ हम रोज हवाखोरीको जाते हैं, वहाँ एक दिन हमेशाके लिए जानेमें डर कैसा? हमारा फर्ज है कि हम देशके लिए मरनेको हमेशा तैयार रहें ।'

भला, ऐसी जगहमें रहनेकी हिम्मत कौन कर सकता है? वही, न जिसे देशसेवाका सबक सीखाना हो, गांधीजीकी सोबतमें रहना पसन्द हो, और मेहनत-मशक्कतकी सीधी-सच्ची जिन्दगी बितानेकी लौ लगी हो ।

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