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नौकर

आम तौर पर लोग आजकल पानी भरने, बरतन मलने झाड़ने-बुहारने, पीसने, रसोई बनाने, कपडे़ धोने, कातने और पाखाना-सफाई वगैरा करनेसे जी चुराते हैं, क्योंकि उनके खयालमें ये सारे काम हलके हैं। फुरसत रहते हुए भी वे इन कामोंको हाथ नहीं लगाते, क्योकी वे मानते हैं कि ये सब हलके लोगोके करने लायक काम हैं । चुनाँचे वे इनके लिए नौकर रखते हैं, और उन नौकरोंको हलका समझकर उनके साथ खुद हलकेपनका सलूक करते हैं ।

गांधीजी किसी कामको हलका नहीं समझते। आश्रम शुरू करनेसे पहले भी उनके खयाल इसी तरहके थे । यह नहीं कि उन्होंने कभी अपने घरमें नौकर रक्खे ही न हों, पर नौकरोके साथ नौकरका-सा सलूक उन्होंने कभी नहीं किया ।

बचपनमें, जब वे बहुत छोटे थे, उनके घर रम्भा नामकी एक नौकरानी काम करती थी । गांधीजी आज भी उसे सगी माँकी तरह याद करते हैं । बचपनमें इसी रम्भाने गांधीजीको सिखाया था कि जब डर लगा करे, रामका नाम ले लिया करो, डर भाग खडा़ होगा । गांधीजी उसकी सीखको अभी तक भूले नहीं हैं ।

बैरिस्टरी पास करनेके बाद गांधीजी कुछ दिन बम्बईमें अपने कुनबेके साथ रहे थे । उस वक्त उन्होंने अपने यहाँ एक ब्राह्मण रसोइयेको नौकर रक्खा था । खुद विलायतसे लौटकर आये थे। बडी़ शानसे अंग्रेजी ठाट-बाटमें रहते थे । नौकरोको नौकर नहीं समझते थे । आधी रसोई महाराज बनाता, आधी खुद बनाते, साथमें रसोइयेको कुछ सिखाते भी जाते और उनके संग बराबरीसे बैठकर खाना खाते। नौकरके नाते उससे किसी तरहका भेदभाव न रखते ।

दक्षिण अफ्रीकामें गांधीजी काफी कमाते थे। वहाँ उनका परिवार भी बहुत बडा़ था । फिर भी कपडे़ धोने और पाखाना साफ करनेका काम गांधीजी और कस्तूरबा अपने हाथों करते थे । घरमें महरों और मुहर्रिरोंकी कमी न थी; लेकिन वे सब घरके आदमी ही समझे जाते थे और उनके साथ वैसा ही सलूक भी होता था ।

आश्रमवासी बननेके बाद तो नौकर न रखने और सारा काम खुद करनेका नियम ही बन गया जिसका सारा जीवन ही सेवाके लिए है, उनके लिए नौकर क्या और मालिक क्या?


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