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आश्रम-2

गांधीजीके साबरमतीवाले आश्रममें एक छात्रालय था । इस छात्रालयमें देश-विदेशके विद्दार्थी आकर रहते थे । कोई कातना सीखता था, कोई पींजना सीखता था और कोई करघे पर हाथसे खादी बुनना सीखता था । कुछ विद्दार्थी कारखानोंमें बढ़इगिरीका काम सीखते और चरखे वगैरा बनाते थे ।

आश्रममें कई लड़के और कई लड़कियाँ रहती थीं । वे सभी उद्दोग सीखते और साथ साथ पढ़ते-लिखते भी थे ।

आश्रममें बडी़ बहनोके लिए एक स्त्री-निवास था । वे रोज अपने निवासमें इकठा् होतीं और प्रार्थना करतीं, कुछ देर लिखतीं-पढ़तीं और कातने-पींजने का काम भी करतीं । आश्रमका संयुक्त भोजनालय, जहाँ सभी आश्रमवासी मिलकर खाते थे, ये बहनें ही चलातीं थीं । वे बारी बारीसे रसोई-घरमें काम करतीं और कोठारका अनाज साफ करनेमें मदद पहुँचातीं ।

आश्रममें नन्हें नन्हें बच्चोंका एक बालमंदिर भी चलती, लेकिन उसके लिए अलगसे कोई शिक्षक न रक्खा जाता । आश्रमवासिनी बहनें ही उस बालमंदिरका काम देखतीं ।

आश्रममें एक सुंदर गौशाला थी। गौशालामें बहुतेरी मोटी-ताजी गायें थीं । आश्रममें हमेशा गायके दूधका ही उपयोग होता था ।

आश्रमका अपना एक छोटा-सा चर्मालय भी था । उसमें अपनी मौत मरे मवेशियोंका चमडा़ कमाया जाता, और उसके चप्पल वगैरा बनाये जाते । जो ढोर कत्ल किये जाते हैं, उनके चमडे़को काममें लाना, उनके कत्लमें मदद पहुँचाना है । इसलिए आश्रमवासी इस अहिंसक चमडे़के जूते और चप्पल वगैरा ही काममें लाते हैं ।

आश्रमकी अपनी थोडी़ खेती-बाडी़ भी है । उसमें कुछ तो फलोके पेड़ लगाये गये हैं, कुछ साग-सब्जी होती है, और खेतोंमें कुछ जुवार व कपास वगैरा भी बोया जाता है । इन सब कामोंमें आश्रमके भाई, बहन और बच्चे सभी पूरा-पूरा भाग लेते । वे बारी बारीसे कभी रसोईघरमें काम करते, कभी गोशालामें गोबर उठाने जाते, कभी पाखानोंकी सफाई करते, और कभी खेती-बाडी़के काममें सहायक होते ।

सुबहसे शाम तक गांधीजीका आश्रम मधुमक्खीके छत्तेकी उद्दोगसे गूँजा करता । गांधीजीने इसलिए उनका नाम उद्दोगमन्दिर रख दिया, जो बहुत ही ठीक हुआ ।

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