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आश्रम-1

अहमदाबाद गुजरात का राजनगर है । इसी राजनगरके नजदीक साबमती के किनारे गांधीजीका पुराना आश्रम है ।

एक जमाना था, जब इस आश्रममें गांधीजी रहते थे, कस्तूरबा रहती थीं, और दूसरे बहुतेरे भाई और बहन, बच्चे और बच्चियाँ भी रहती थीं ।

आश्रममें गुजराती थे, महाराष्ट्री थे, पंजाबी और सिंधी थे, मद्रासी और नेपाली भी थे । हिन्दुस्तानके सभी सूबोके लोग वहाँ रहते थे । यूरोपके गोरे व चीन और जापानके पीले लोग भी रहते थे ।

वे सभी खादी पहनते और नियमसे कातते थे ।

वे सुबह चार बजे उठकर प्रार्थनामें आते और फिर शामको सात बजेकी प्रार्थनामें भी शरीक होते । प्रार्थनामें वे श्लोक-पाठ करते, भजन गाते और रामधुनकी रट लगाते । वे गीतका पारायण करते, और अकसर प्रार्थनाके बाद गांधीजीका प्रवचन सुनते ।

सभी आश्रमवासी एक साथ, एक जगह, बैठकर खाते। भोजनमें मिर्च, मसाला, हींग आदिका बिलकुल उपयोग न करते । सादा और सुस्वादु भोजन आश्रमकी विशेषता रहती । सुबह-शाम नियत समय पर सब खाने बैठते और शांतिमंत्र बोलकर खाना शुरू करते । ऐसे समय कई बार गांधीजी खुद सबको परोसकर खिलाते ।

आश्रममें हरिजन भी सबके साथ ही रहते और साथ ही काम करके आश्रमके भोजनालयमें भोजन करते ।

आश्रममें सफाईका बहुत खयाल रक्खा जाता । जहाँ-तहाँ थूकना, कागज फेंकना, जूठन गिराना या पेशाब करना मना था ।

आश्रमवासी जहाँ-तहाँ पाखाना फिरकर आसपासके जंगलको गंदा नहीं करते । वे सुंदर, हवादार और उजले कमरोंमें पाखानेका प्रबंध करते हैं, और पाखाना फिरनेके बाद मैलेको साफ मिट्टीसे ढँक देते हैं । आश्रमवासी अपने पाखानोंकी सफाई खुद ही करते हैं। इससे जो खाद मिलती है, उसके कारण आश्रमके बगीचे खूब पनपते और लहलहाते रहते हैं !

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