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मौन-वार

गांधीजी हर सोमवारको मौन रखते हैं, यानी उस दिन वे किसीसे बोलते या बातचीत नहीं करते । कैसा भी जरूरी काम क्यों न आ पडे़ वे अपना मौन नहीं तोड़ते। जरूरत पड़ने पर जो कहना होता है, कागज पर लिखकर कह देते हैं, लेकिन बोलते तो हरगिज नहीं ।

हफ्तेमें एक दिन इस तरह मौन रहनेसे उन्हें बडी़ शान्ति मिलती है । उस दिन न किसीसे बातचीत करनी पड़ती है। न सभाओंमें भाषण देने पड़ते हैं, और न कहीं घूमने-भटकने जाना पड़ता है। इस तरह उस दिन हलचल या चहल-पहलका सारा काम बन्द रहता है ।

मौन-दिनकी इस शान्तिमें उनको कीफी आराम मिल जाता है । लेकिन जानते हो, इस आरामका उपयोग वे किस तरह करते हैं?

आरामका यह दिन गांधीजी सोकर तो बिता नहीं सकते । हफ्तेके आखीरमें कामका जो ढेरों बोझ बढ़ जाता है, मौन-दिनकी शान्तिमें उसीको उतारकर वे हलके हो जाते हैं ।

यों मौनपूर्वक चुपचाप काम करनें जो आनन्द आता है, वह अनुभव करनेकी चीज है ।