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गांधीजीकी रहन-सहन

क्या तुम जानते हो, गांधीजीकी रहन-सहन कैसी है? जानना चाहोगे क्या कि वे किस तरह रहते हैं?

तो सुनोः

वे रोज सवेरे चार बजे नियमसे उठते हैं । दतौन करके हाथ-मुहँ धोते और फिर प्रार्थनामें शामिल होते है । प्रार्थनाके बाद वे कभी थोडा़ आराम करते, कभी लिखते-पढ़ते और फिर नीबूका रस और शहद मिला हुआ गरम पानी पीते हैं । उसके बाद कसरतके तौर पर रोज नियमसे घूमने जाते हैं ।

लौटते समय आश्रमके बीमार भाई-बहनोंको देखते हुए, उनका कुशल-मंगल पूछते हुए, वापस अपनी जगह पर आते हैं ।

फिर वे रसोईघरमें जाकर अपने हिस्सेका काम करते हैं । इसी समय वे थोडा़ नाश्ता भी कर लेते हैं । इसके बाद या तो आनेवाले मुलाकातियोंसे बातचीत करते हैं, या आये हुए पत्रोंको पढ़ते और उनके जवाब लिखते हैं, या नवजीवन और यंग इन्डिया के लिए लेख लिखते हैं ।

भोजनके समय परोसनेका काम वे बडे़ चावसे करते हैं ।

दोपहरको वे नियमसे चरखा चलाते हैं। दिनमें कमसे कम एक घण्टा, और कममें कम 160 तार कातनेका उनका नियम है ।

शामको सूरज डूबनेसे पहले ही वे भोजन कर लेते हैं, और भोजनके बाद थोडा़ घूम लेते हैं ।

शामको सात बजे जब प्रार्थनाकी घण्टी बजती है, वे घूमकर वापस आ जाते हैं ।

इसके सिवा, गांधीजी अपने समय-पत्रके अनुसार कभी आश्रमकी बहनोंको, कभी बालमन्दिरके बालकोंको कुछ पढा़ते-लिखाते भी हैं ।

इस तरह सारा दिन काम करके रातके साढे़ नौ बजे वे सो जाते हैं । लेकिन कभी-कभी काम इतना ज्यादा हो जाता है कि रातमें देर तक जागकर उसे पूरा करना पड़ता है । यों, देरसे सोने पर भी सुबह चार बजे वे उठते ही हैं । इसमें कोई फर्क नहीं पड़ता ।

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