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चरखा

'हे भगवन् ! अगर मौत ही देनी हो, तो ऐसी देना कि एक हाथमें चरखेका हत्था हो, दूसरेमें पूनी रह गई हो, आँखें मुँद जायँ ।

भला भगवानसे ऐसी प्रार्थना कौन करता होगा?

गांधीजी ही तो; और कौन कर सकता है?

चरखेसे उन्हें बेहद प्यार है ।

रोज चरखे पर सूत कातना उनका एक अटल नियम है; व्रत है । कैसा भी वक्त क्यों न हो, गांधीजी चरखा कातेंगे और जरूर कातेंगे ।

सफरमें भी वे चरखेको हमेशा अपने साथ रखते हैं, और फुरसत निकालकर जरूर कात लेते हैं । बीमारी और कमजोरीमें भी वे कातना नहीं छोड़ते ! उनका व्रत ही ऐसा है ।

जब जेल जाते हैं, तो वहाँ भी वे अपने प्राणोंसे प्यारे चरखेको जरूर साथ ले जाते हैं ।

यरवदा जेलमें गांधीजीने दो चक्कोंवाले चरखे पर खूब काता और कातते-कातते उसमें कई तरहके सुधार भी किये । यही सुधरा हुआ सुन्दर, नाजुक, नन्हा चरखा आज यरवदा चक्र के नामसे मशहूर है ।

चरखेमें वह ताकत है कि उससे देशके करोडो़ नंगे अपना तन ढँक सकते हैं, और भूखे भरपेट भोजन पा सकते हैं । चरखेके सूतमें देशको स्वराज्य दिलानेकी शक्ति है । उसीसे गांधीजी उसे कामघेनु कहते हैं, और उसकी हल्की, मीठी गूँजमें मीठे–से–मीठे संगीतका अनुभव करते हैं । देशमें करोडो़ गरीब हैं, जो दिन-रात बहाने पर भी भरपेट खा नहीं पाते । उनके इस दुःखका अनुभव हमें कैसे हो सकता है तभी न, जब हम भी उनकी तरह कुछ मेहनत करें, कुछ पसीना बहायें इसलिए गांधीजी कहते हैं कि जिन्हें देशके गरीबोंका दुःख दूर करना है, और उसके दुःखमें शरीक होना है, उन्हें हर रोज कमसे कम आध घण्टा सूत जरूर कातना चाहिये ।

हिन्दुस्तानके तिरंगे झण्डेके बीचोंबीच चरखा छपानेका खयाल भी गांधीजीका ही है । झण्डे पर छपा हुआ वह चरखा दुनियाके बीच यह ऐलान करता है कि जो स्वराज्य करोडो़ गरीबोंका है, वही सच्चा स्वराज्य है ।

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