| | |

सत्य

बचपन ही से गांधीजीको सत्य या सच्चाई बहुत प्यारी रही है ।

उन्होंने अपनी 'आत्मकथा' में लिखा है कि कैसे वे अपने बचपनमें कुछ दिनोके लिए बुरी सोहबतमें पड़ गये थे और फिर कैसे उससे छूटे ।

बचपनमें अपने साथी-संगियोके साथ गांधीजीको भी बाजारका खाने और बीडी़ वगैरा पीनेका शौक लग गया था । ऐसे कामोके लिए माँ-बापसे तो पैसे माँगे नहीं जा सकते । इसलिए इन लोगोंने घरके नौकरोंकी जेबसे पैसे चुराना सीख लिया ।

मोहनदासको ये काम दिलसे पसन्द नहीं थे; मगर क्या करते? दोस्तोंको खाते-पीते देखकर मन मचल पड़ता था, और दिल बेकाबू हो जाता था ।

यों होते-होते खाने-पीनेका खर्च, और खर्चके साथ कर्ज बढ़ने लगा । दूकानदारोके तकाजे शुरू हो गये । अब क्या हो? खयाल हुआ, नहीं, डर-सा लगने लगा, कि कहीं दूकानदार दस जनोके सामने पैसे न माँग बैठे ! कहीं घर जाकर पिताजीसे न कह बैठें !

नौकरोंकी जेबसे तो पैसे दो पैसे ही मिल पाते थे; और कर्ज बेहद बढ़ गया था । अब क्या हो?

दोस्तोंकी टोली परेशान हो उठी । इस टोलीमें मोहनदासके बड़े भाई भी शामिल थे । इस आफतसे बचनेकी उन्हें एक तरकीब सूझी, और वह चोरीकी तरकीब थी । उन्होंने कहा – "मेरे हाथमें सोनेका यह कड़ा है, इसमें से एक तोला सोना काटकर कर्ज चुकाया जा सकता है, और बात भी छिपाई जा सकती है।"

मोहनदासको यह अटपटा तो लगा, लेकिन विरोध करनेकी उनकी हिम्मत न हुई । उन्होने कड़ा कटने दिया ।

इस तरह कर्ज तो अदा हो गया, पर जिसे सच्चाई प्यारी थी, वह तो मन-ही-मन बेचैन हो उठा ।

उसकी आत्मा पुकार उठी – 'अरेरे, मैं इस चोरीमें क्यो शामिल हुआ? मैंने छिपकर खाया, छिपकर बीडी़ पी ! भाड़में जाए यह खाना, और धूलमें मिले यह धुआँ उडा़ना !'

फिर खयाल आया – 'हाय-हाय ! कैसी गलती हुई ! खुद ठगाया और पिताजीको भी ठगा।'

मोहनदास उदास रहने लगे – उन्हें न खाना अच्छा लगता था, न पीना । जो गलती हो गई थी, उसका खयाल दिनरात कचोटा करता था ।

आखिर उन्होंने तय कर लिया – 'पिताजीके सामने जाकर अपनी गलती कबूल करूँगा। वे नाराज होंगे, नाराज होंगे, नाराजी सह लूँगा। मारेंगे, मार खा लूँगा।'

पिताजीके सामने जाकर मुँहसे कुछ कहनेकी हिम्मत कैसे हो? मोहनदासने एक चिट्ठी लिखी । चिट्ठीमें अपनी गलतियोंका पूरा ब्योरा लिखा; गलतियाँ कबूल की और पिताजीसे माफी माँगी । आँसूभरी आँखों और काँपते हाथों चिट्ठी पिताजीको दी । पढ़ते ही उनकी छाती भर आई । आँखें सजल हो ऊठीं । उन्होंने कसूर माफ कर दिया, और अपने सत्यवादी बेटेको गले लगा लिया !


| | |