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परीक्षा

गांधीजी अंग्रेजीके दूसरे या तीसरे दर्जेमें पढ़ते थे ।

एक बार उनके स्कूलमें कोई इन्स्पेक्टर इम्तहान लेने आए और उन्होंने गांधीजीकी कक्षामें सभी छात्रोंको अंग्रेजीके पाँच शब्द लिखाये ।

वर्ग-शिक्षक पासमें खडे़ थे । वे घूर-घूरकर तिरछी निगाहसे देख रहे थे कि कौन क्या लिख रहा है । उनकी छाती धड़क् रही थी । वे डरते थे कि कहीं लड़कोंने गलत लिख दिया, तो डाँट उन पर पडे़गी । इन्स्पेक्टर कहेंगेः 'मास्टर पढा़ना नहीं जानता।'

मास्टरने देखा कि मोहनदासने 'केटल' (Kettle) शब्दके हिज्जे गलत लिखे हैं । पर बेचारे क्या करते वे घूमते-घामते मोहनदासके पास गये, और अपने बूटकी ठोकरसे उनका पैर दबाकर इशारा करने लगे कि वह पासवाले लड़केकी पट्टी देख लें । लेकिन मोहनदास तो इन बातोंसे कोसों दूर रहनेवाले थे । उन्हें खयाल तक न हुआ कि मास्टर 'चोरी'का इशारा कर रहे हैं । फिर वह कैसे समझ लेते कि शिक्षक दूसरेका देखकर सही लिखानेको सुझा रहे हैं?

दूसरे दिन शिक्षकने मोहनदाससे कहा – 'निरे बुद्धू हो जी तुम ! कितने इशारे किये, मगर तुम्हारी समझमें कुछ खाक भी न आया।'

गांधीजीने शिक्षकसे तो कुछ नहीं कहा, मगर अपने मनमें यह जरूर समझ लिया कि शिक्षककी बात मानने लायक न थी; वह गलत थी और पापकी जड़ थी।

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