| | |

कस्तूरबा

शायद तुममें से कइयोंने गांधाजीको देखा होगा, पर कस्तूरबाको तो शायद बिरलों ही ने देखा हो ! वे गांधीजी जैसे महापुरूषकी पत्नी हैं । तुम सोचते होगे कि वे महारानी बनकर रहती होंगी । माताजीके नाते लोगोंसे अपनेको पुजावती होंगी । उनका ठाट-बाट ही कुछ निराला रहता होगा । आश्रममें रहते समय वे गांधीजीकी बराबरीसे बैठती और लोगोंको दर्शन दिया करती होंगी ! पर दरअसल ऐसी कोई बात नहीं । 'बा' का तो ढंग ही कुछ और है । वे कभी आगे आतीं ही नहीं। आश्रममें जाकर देखो, तो उन्हें कहीं न कहीं किसी काममें मशगूल पाओ ! कभी रसोईघर में रोटी बेलती दिखाई पडे़गी, कभी गांधीजीका खाना तैयार मिलेंगी, कभी किसी बीमारकी सेवामें, तीमारदारीमें, लगी होंगी । हाँ, जब कभी गांधीजी बीमार होते हैं, तो उनका सर दबानेका काम कस्तूरबा ही करती हैं, और ऐसे समय वे उनके पास जरूर दिखाई पड़ जाती हैं ।

कस्तूरबाकी यह आदत नहीं कि वे सभाओंमें या जलसोंमें गांधीजीके साथ बराबरीसे जायँ, और मंच पर खडी़ होकर भाषण करने लगें । उनका तो तरीका ही कुछ और है । अकसर तो वे जातीं ही नहीं, मुकाम पर ही रहती हैं; पर जब जाती हैं, तो चुपचाप पीछे-पीछे जाती हैं, और सभाके किसी कोनेमें, बहनोंके बीच, चुपके-से बैठ जाती हैं । किसीको खयाल तक नहीं होता कि ये कस्तूरबा हैं, गांधीजीकी पत्नी हैं !

कस्तूरबाको बडी़ बनकर घूमनेका जरा भी शौक नहीं । बड़प्पनके दिखावेसे उन्हें कोई मतलब नहीं । वे तो एक ही बात जानती हैं - गांधीजीके पीछे-पीछे चलना और उनकी सेवा करना ! सीताने रामके लिए राजपरिवारका सुख छोड़ा, और जंगलकी राह पकडी़ थी । कस्तूरबा भी इसी तरह शाही सुखोंका त्याग करके गांधीजीके साथ आश्रमवासिनी बनी हैं।

इस जमानेमें तुम्हें कही सतीके दर्शन करके हों, तो कस्तूरबाके दर्शन कर लो ।

| | |