| | |

अवसान

लेकिन रचनात्मक कार्य़ों को पुनः हाथ में लेना मानो बदा ही न था। 20 जनवरी, 1948 को वे बाल-बाल बच गये, जब शाम को बिड़लागभवन की प्रार्थना सभा में उन पर एक बम फेंका गया। उन्होंने बम विस्फोट पर ध्यान न देकर अपना भाषण जारी रखा। दूसरे दिन जब उन्हें विस्फोट के समय जरा भी न घबराने के लिए बधाइयां दी गयप तो उन्होंने कहा : "सच्ची बधाई के योग्य तो मैं तब होऊंगा जब विस्फोट का शिकार होकर भी मैं मुस्कराता रहूं और हमला करने वाले के प्रति मेरे मन में जरा भी विद्वेष न हो।" बम फेंकने वाले को उन्होंने "पथभ्रष्ट युवक" कहा और पुलिस से आग्रह किया कि उसे "सतायें" नहीं, किंतु प्रेम और धीरज से समझा कर सही मार्ग पर लायें। मदन लाल नाम का यह "पथभ्रष्ट युवक" पश्चिम पंजाब का शरणार्थी था और गांधीजी की हत्या के षड़यंत्रकारी दल का सदस्य था। इन उत्तेजित युवकों का विचार था कि हिंदू धर्म के लिए इस्लाम बाहरी और गांधी भीतरी खतरा हैं। जब मदन लाल चूक गया, तो दल का पूना से आया दूसरा षड़यंत्रकारी युवक नाथूराम गोडसे 30 जनवरी की शाम को गांधीजी की प्रार्थना-सभा में गया और पिस्तौल निकाल कर धड़ाधड़ तीन गोलियां चलायप। गांधीजी 'हे राम' कहते हुए तुरंत धराशायी हो गये।

| | |