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साम्प्रदायिक समस्या

इन वर्ष़ों में साम्प्रदायिक तनाव बढ़ जाने से गांधीजी बहुत दुखी और परेशान रहते थे। कुछ हद तक तो तनाव के बढ़ जाने का कारण विधानमण्डलों के चुनाव थे। धार्मिक अल्पसंख्यकों के प्रतिनिधि अपने धर्मावलम्बियों के सीमित निर्वाचन-क्षेत्र से ही चुने जा सकते थे। दूसरे धर्म़ों के लोग इस क्षेत्र में वोट नहीं डाल सकते थे। यह स्वाभाविक ही था कि मुसलमान उम्मीदवार धार्मिक प्रश्नों को उठाते। जिससे अधिक-से-अधिक निर्वाचकगण, जिनमें अधिकांश अनपढ़ थे, आसानी से प्रभावित होते। घटनाचक्र ऐसा रहा कि 1937 के बाद से, मुहम्मद अली जि़ जिन्ना के नेतृत्व में अखिल भारतीय मुस्लिम लीग को इसी में अपना हित दिखाई दिया कि वह धार्मिक भावनाओं को भड़काए। चुनावों में लीग को अधिक सफलता नहीं मिली। कांग्रेस और गांधीजी की निन्दा कर और उनके विरुद्ध उत्तेजनापूर्ण भाषण देकर, इसने अपनी खोई प्रतिष्ठा फिर से प्राप्त करने की कोशिश की। गांधीजी को मुसलमानों का `दुश्मन नम्बर एक` बताया गया। अंग्रेज गवर्नरों को इस बात का दोषी ठहराया गया कि मुसलमान अल्पसंख्यकों पर सुनियोजित अत्याचार करने में हिन्दुओं को उनका गुप्त सहयोग प्राप्त है। मुसलमानों पर किये गये "जुल्म" के सम्बन्ध में बढ़ा-चढ़ा कर उड़ती-पड़ती अस्पष्ट बातें कही गई।

कांग्रेस के प्रति मुस्लिम लीग का विरोध धीरेगधीरे उग्र होता चला गया। जिन्ना इस बात पर भी शंका प्रकट करने लगे कि लोकतंत्र प्रणाली भारत के लिए उपयुक्त है। 1940 में उन्होंने यह सिद्धांत देश के सामने रखा कि हिन्दू और मुसलमान दो भि़न्न राष्ट्र हैं और मुसलमानों को उपमहाद्वीप के उत्तर-पूर्व और उत्तर-पश्चिम में अपने अलग देश की स्थापना करनी चाहिए। जब गांधीजी ने दो राष्ट्रों के सिद्धांत और लीग की पाकिस्तान की मांग के बारे में सुना तो वह चकित रह गए और उन्हें सहसा विीवास न हुआ। धर्म का प्रयोजन लोगों के दिलों को मिलाना है या अलग करना ? उन्होंने दो राष्ट्रों के सिद्धान्त को असत्य कहा। इससे कड़ा शब्द उनके शब्दकोष में दूसरा था ही नहीं। उन्होंने राष्ट्रीयता के तत्वों की व्याख्या की। उन्होंने कहा कि धर्म के परिवर्तन में राष्ट्रीयता नहीं बदलती। धर्म भि़-भि़ हो सकते हैं लेकिन इससे संस्कृति भि़ नहीं हो जाती। उन्होंने लिखाः "बंगाली मुसलमान बंगाली हिन्दू की ही भाषा बोलता है, वही खाना खाता है और जिन चीजों से हिन्दू का मनोरंजन होता है, उन्हप से उसका भी। वेशभूषा भी दोनों की एक जैसी होती है। यहां तक कि जि़ जिन्ना साहब का नाम भी मुझे तो हिन्दू का नाम ही मालूम पड़ता है। पहली बार जब मैं उनसे मिला तो मैं जान भी न पाया कि वह मुसलमान है।"

भारत के विभाजन का अर्थ होगा हिन्दुओं और मुसलमानों के सदियों के काम पर पानी फेर देना। यह विचार मात्र गांधीजी की आत्मा को संतप्त कर देता था कि हिन्दू धर्म और इस्लाम परम्पर विरोधी संस्कृतियों और सिद्धान्तों के प्रतीक हैं, और आठ करोड़ मुसलमानों और उनके हिन्दू पड़ोसियों के बीच कोई समानता नहीं है। और मान भी लिया जाय कि धर्म और संस्कृतियां भि़ हैं, तो भी उद्योग, न्याय, सफाई और राजस्व आदि समान हितों में क्या बाधा पड़ती है ? जो भी अन्तर है वह धर्म के पालन के तरीके में है, जिससे धर्मनिरपेक्ष राज्य को कोई वास्ता ही न होगा।

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