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प्यारेलाल नैय्यर

 

87. ‘छोटी-छोटी बातों के माध्यम से जीवन – गढ़न’

अहिंसा अर्थात ‘नितांत शुद्धि’ आंतरिक और बाह्य दोनों, गाँधीजी ने एक बार यह व्याख्या दी थी । उन्होंने कहा था कि, आज तो गाँव कंगाल बन गये हैं । शहरों को थोडा़ मोहक बनाया गया है परन्तु ग्रामों में निवास करते करोडो़ लोगों को अज्ञान की बुरी दशा में छोड़ दिया गया । वहाँ पीने के लिए स्वच्छ जल तक कहीं नहीं मिलता, ग्रामवासियों की शिक्षा की ओर भी दुर्लक्ष किया गया और उनके दिमाग में अंधकार व्याप गया । ऐसे अनेक प्रकार के रोगों से प्रत्येक गाँव पीड़ित होने लगा, जिन्हें रोका जा सकता है । प्रत्येक गाँव में ढेरों ठग-धूर्त हैं जो ग्रामवासियों को शिकार बना रहे हैं । देह और दिमाग को प्रभावित करनेवाले इस भयंकर रोग का निवारण करने के कार्य में हमें जुट जाना चाहिए । हिंदुस्तान में लोगों की कमी नहीं है परन्तु आवश्यकता है योग्य दिशा में सामूहिक पुरुषार्थ की । तब दुर्जनों को फलने-फूलने का अनुकूल वातावरण वहाँ नहीं रहेगा । लोगों के सहयोग की बुनियाद पर प्रयास द्वारा गरीबी और अज्ञान दूर होगा, तथा फिर से उनके बीच एक रागभरा संबंध स्थापित होगा ।    

इसी प्रकार, अहिंसा की शक्ति का परिचय देने के लिए ग्रामीणों के दैनिक अनुभवों को स्पर्श करती छोटी-छोटी बातों पर गाँधीजी प्रवचन देते । गाँधीजी के लिए छोटे-तुच्छ विषय और महत्त्वपूर्ण विषय जैसा कोई भेद ही नहीं था । सत्याग्रही के प्रत्येक कार्य में चाहे वह निजी जीवन से संबंधित हो या सार्वजनिक जीवन से, सच्ची गूंज होनी चाहिए । गाँधीजी कहते थे कि छोटी-छोटी बातों द्वारा, हर आदमी कर सके ऐसी सामान्य वस्तुओं द्वारा, मैंने अपने जीवन को गढा़ है । इसीलिए जो मैंने सिद्ध किया है वह प्रत्येक व्यक्ति सिद्ध कर सकता है ।