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चंद्रशेखर प्रा. शुक्ल

 

83. स्वच्छताका पाठ

उद्यम के संबंध में, हम सब के लिए, सेना से बहुत कुछ सीखने लायक है । सेना का जवान जो सम्मान पाता है उसका मुख्य कारण तो यही है कि वह जान हथेली पर लेकर मौत का सामान करने जाता है । परन्तु उसके प्रति विशेष आदर होने का एक दूसरा कारण उसका नियमबद्ध तथा अनुशासन-युक्त जीवन भी है। सेना की छावनी देखें तो मानो स्वच्छता का नमूना ही होता है ।

एक बार गाँधीजी ने हमें यह पाठ सिखाया था । 1934 की हरिजन यात्रा के दौरान हम दुर्ग में थे । एक सुबह उस स्थान को छोड़कर जाने के समय वे हमारे कमरे में आये । जगह-जगह कचरा, कागज का टुकडा़ बिखरा हुआ देख उनकी आँखें बदल गईं । वे बोलेः ‘इस स्थिति में यह स्थान छोड़ कर यहाँ से कैसे जाया जा सकता है ? सेना ने जहाँ पडा़व डाला हो, वहाँ से मुकाम उठाते समय स्थान को बिल्कुल साफ करके ही जाना होता है – यह नियम होता है । यह नियम हमें भी पालन करना चाहिए। अतः अब प्रतिदिन जिस जगह से प्रस्थान करो, उस स्थान को अच्छी तरह साफ छोड़ कर ही निकलना। मैं देखूँगा और यदि गलती हुई तो अच्छी खबर लूँगा ।’