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जान हेन्स होम्स

 

79. ‘एक नरोत्तम’

आज से लगभग बास वर्ष पहले मैंने अमेरिका की जनता के समक्ष कहा था कि गाँधीजी इस जगत के सर्वोत्तम पुरुष हैं ।’ उस समय पश्चिम के दोशों में उनका नाम अधिक परिचित नहीं हुआ था ।

गाँधीजी को इस युग में अग्रस्थान मिला है, उसका कारण सामान्यतः प्रतिभा या कीर्ति में गिनी जानेवाली कोई वस्तु नहीं है । वे किसी सेना के अधिपति नहीं या राज्य-विजेता नहीं । ऊँचे ओहदे पर बैठकर प्रजा पर अपना शासन चलानेवाले राजपुरुष नहीं । वे दार्शनिक नहीं । अन्य कुछ नहीं तो बाहर से प्रभावशाली लोकनेता जैसे चमकदार और प्रतापी व्यक्तित्व के लक्षण भी उनमें नहीं । उनकी प्रतिभा तो आत्मा के क्षेत्र में झलकती है । अपने आत्मबल के कारण वे जो कार्य कर सके हैं, उसे करनेवाले विश्व-इतिहास में अंगुली पर गिने जानेवाले बडे़-से-बडे़ लोगों को वे पीछे छोड़ देते है तो अन्य किसी की क्या औकात !

हिंदुस्तान को जब आखिर में आजादी मिलेगी तब उसका श्रेय अन्य किसी हिंदुस्तानी से अधिक गाँधीजी को दिया जायेगा । गाँधीजी ने अपने देशबांधवों के स्वदेशी संस्कार को दोबारा जागृत किया, उनमें आत्मगौरव और स्वाभिमान की वृत्ति को सतेज किया, उनके हृदय और मन को आत्म-संयम की शिक्षा दी। इस प्रकार देश-बंधुओ को जैसे स्वराज्य लेने में समर्थ बनाया, वैसे ही उसका उपभोग करने योग्य भी बनाया । उन्हें राजनीतिक स्वतंत्रता के साथ आत्मा की मुक्ति भी प्रदान की – ऐसे भगीरथ कार्य करने का यश भी उन्हें दिया जायेगा और इसके लिए उनकी स्तुतिया गायी जाएगी । साथ ही अस्पृश्य वर्ग के लोगों को दुख एवं दासत्व से छुटकारा दिलवाने के रूप में मानवमुक्ति के महान कार्य स्वरूप जगत-इतिहास में यह चिरस्मरणीय रहेगा । अंत में आता है गाँधीजी का सर्वश्रेष्ठ कार्य । उन्होंने ‘अहिंसक प्रतिकार’ का सिद्धान्त लेकर जगत में स्वतंत्रता, न्याय और शांति की स्थापना का साधन बनाया है । 

संसार में, भूतकाल में हुए अनेक महात्माओं की पंक्ति में गाँधीजी रखने योग्य हैं । विल्बर फोर्स, गैरीसन और लिंकन की भाँति वे गुलामों के महान मुक्तिदाता हैं । ‘अमोघ प्रेम’ के शिक्षक के रूप में वे संत फ्रांसिस, थोरो तथा टालस्टाय की पंक्ति में बैठते हैं । सर्वकाल के सर्वश्रेष्ठ धार्मिक पैगम्बरों में वे लोओत्से, बुद्ध, जरथुस्ट और ईसा के समान है । लेकिन इन सब की अपेक्षा उनकी महत्ता एक नरोत्तम के रूप में, एक पुरुष श्रेष्ठ के रूप में अधिक है । उनके बारे में मैंने अपनी एक पुस्तक में लिखा हैः 

“वे विनम्र, विनयी और अतिशय प्रेमल हैं । उनकी विनोदवृत्ति अदमनीय है । उनकी सरलता मुग्ध करनेवाली है । उनकी शांति अगाध है । उनका हृदय कुसुमवत कोमल है तो वज्रसम कठोर भी हो सकता है । उनमें संकल्प बल अदम्य है । उनकी हिम्मत पर्वत जैसी अडिग है । उनके मन-वचन कर्म की एकाग्रता इतनी पारदर्शी है कि खुली आँखों से देखी जा सकती है । उनकी सत्य की उपासना अविचल है ।”