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महेन्द्र मेघाणी

 

66. ‘गाँधी – हृदय में पडी़ छवियाँ’

गाँधीजी जैसे कठोर व्रतधारी ने लिखा है कि ‘केवल व्रत पालने से पार नहीं उतर सकते । सतत कीर्तन चले तो व्रत फलते हैं । उत्तम जीवन-चरित्रों को पढ़ते रहें तो बल मिलता है ।’

इस महापुरुष के हृदय में कैसे-कैसे नर-नारियों की छाप पडी़ होगी, उसका वर्णन यदि कोई ‘अक्षर देह’ के सौ खण्डों में भी करे तो बहुसंख्य वाचक समुदाय की उसमें दिलचस्पी होगी और उन्हें बल मिलेगा । परन्तु यहाँ गाँधीजी की ‘आत्मकथा’ में तितर-बितर पडी़ छवियों पर जरा नजर डालते हैं ।

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जगत में बालक का प्रथम परिचय माता से होता है । माता पुतलीबाई का चित्र गाँधीजी ने दो वाक्यों में उपस्थित किया हैः ‘माता साध्वी स्त्री थीं । वे बहुत श्रद्धालु थीं, कठिन से कठिन व्रतों को धारण करतीं और लिया हुआ व्रत अस्वस्थ होने पर भी नहीं छोड़ती थीं ।’

करमचंद गाँधी के विषय में वे कहते हैं ‘पिता कटुम्बप्रेमी, सत्यप्रिय, शूर, उदार परन्तु क्रोधी थे । कुछ विषयों के बारे में आसक्त भी होंगे । पिता के पास शिक्षा के नाम पर केवल अनुभव थे । फिर भी उन्हें व्यवहार-ज्ञान इतना उच्च प्रकार था कि सूक्ष्म से सूक्ष्म प्रश्नों को हल करने में या हजारों लोगों से काम लेने में उन्हें कोई कठिनाई नहीं आती थी ।’

बालक मोहन को प्रभावित करनेवालों में उनकी दाई रंभाबाई सम्भवतः तीसरा व्यक्ति नजर आता है । मोहन भूत-प्रेत से डरता था । इसकी औषधि रामनाम है – यह रंभा ने ही उसे समझाया । मोहन को तो रामनाम से अधिक रंभा पर श्रद्धा थी । जो बीज बचपन में रोपा गया, वह जला नहीं, वरन् वह बीज रूप ‘रामनाम’जीवनभर गाँधीजी के लिए अमोघ शक्ति बना रहा ।