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मुकुलभाई कलार्थी

 

60. ‘बा न खायें, तो मैं खाऊँगा’

बा बहुत अच्छी पाक-शास्त्री थीं । बापू ने जबसे अपने जीवन-व्यवहार में अस्वादव्रत धारण किया तबसे बा की यह कला व्यर्थ-सी बन गई थी । फिर भी बा कुछ न कुछ बनातीं तो सही । अच्छी – अच्छी वस्तुएँ खिलाने और खाने का उन्हें शौक था ।

बा की अंतिम बीमारी के समय भी आगाखान महल में डा. गिल्डर के नाश्ते के लिए मनुबहन से वे रोज कुछ न कुछ बनवातीं ।

एक दिन बा ने मनुबहन को पूरनपोली बनाने का सुझाव दिया और कहा, ‘आज तो मैं भी पूरनपोली खाऊँगी । बापू से भी पूछ आओ कि वे लेंगे क्या ?’

बा अस्वस्थ थीं, कमजोर थीं । यदि बा गरिष्ट वस्तु का सेवन करें तो उनके हृदय के स्पंदन के लिए खतरनाक साबित हो सकता था । इसलिए जब मनुबहन बापू से पूछने गयी तो बा का ख्याल करके बापू ने कहा, यदि बा नहीं खाये, तो मैं खाऊँगा ।’

बा को निर्णय करने में एक पल भी न लगा, बोली ‘ठिक है, मैं नहीं खाऊँगी ।’

तत्पश्चात् बा के पास बैठकर बापू तथा अन्य सभी के लिए पूरनपोली बनवाई और सबको उत्साह से खिलाई । स्वयं जरा-सी चखी तक नहीं ।