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मुकुलभाई कलार्थी

 

59. ‘आप ? और मुझसे डरते हैं !’

साबरमती आश्रम में रसोई की जिम्मेदारी बा के हाथ में थी । बापू से मिलने अक्सर मेहमानों का आना-जाना लगा रहता । बा बडे़ उत्साह से सब कार्य करती थीं ।

त्रावणकोर से आया एक लड़का उनकी मदद के लिए था । एक बार दोपहर का सब काम निपटाकर बा रसोईघर बंद करके थोड़ा विश्राम करने गईं ।

बापू कब से इसी समय की राह देख रहे थे । बा जैसे ही अपने कमरे में गईं वैसे ही फुर्ती से बापू ने उस लड़के को इशारे से अपने पास बुलाया और धीरे से कहा, ‘सुन, अभी कुछ मेहमान आनेवाले हैं और सबके लिए रसोई तैयारी करनी है । बा सुबह से काम करके थक गई हैं अतः उन्हें थोडा़ आराम करने दें । बा को अभी जगाना नहीं । कुसुम को रसोई में मदद करने के लिए बुला ला । कुसुम और तुम मिलकर सब काम कर डालो । चूल्हा सुलगाकर, आटा गूँधकर सब तैयार रखो । बाद में जरूरत पड़े तो बा को उठाना, नहीं तो तुम लोग ही सब कर लेना । और देखो, ऐसा कुछ मत करना कि बा क्रोधित हों । कुछ बिगाड़ना मत और जो चीज जहाँ से लो वहीं वापस ठीक से रख देना । बा यदि मुझपर गुस्सा नहीं हुईं तो मैं तुम्हें शाबाशी दूँगा ।’

तब उस भाई ने कुसुम बहन को बुलाकर चुपके से रसोई की तैयारी करनी शुरू कर दी । हर काम इतनी सावधानी से कर रहे थे, कि कहीं बा जग न जायें । तरकारी काट कर रखी, आटा गूँधा और चूल्हा भी सुलगा लिया । अचानक एक थाली उनके हाथ से छूटकर नीचे गिर पडी़ ।

थाली के गिरने की आवाज से बा जग गयीं । रसोई में बिल्ली तो नहीं घुस गई, यह सोच बा रसोई की ओर गयीं तो वहाँ का दृश्य देख ऊँची आवाज में बोलीं, ‘यह सब क्या धमाल चल रही है ?’

तब दोनों ने बा से सारी बात बता दी बा बोली; ‘परन्तु तुम लोगों ने मुझे क्यों नहीं बुलाया ?’ इतना कहकर वे रसोई तैयार करने में जुट गईं ।

संध्या समय, मेहमानों के लौटने के पश्चात् बा ने बापू के पास जाकर, कमर पर हाथ रखकर उन्हें आडे़ हाथों लिया ‘मुझसे छिपाकर आपने बच्चों को रसोई का काम क्यों सौंपा ? क्या आपको लगा कि मैं आलसी की नानी हूँ ?’ बापू झट समझ गये कि बा के रोष से बच निकलना कठिन है । इसलिए हँसते-हँसते बोले, ‘ऐसे अवसर पर मुझे तुमसे डर लगता है, क्या तू यह नहीं जानती ?’

सुनकर बा खिलखिलाकर हँस पडी़, मानो कह रही हों, ‘आप ? और मुझसे डरते हैं !’