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तनसुख भट्ट

 

52. ‘अहिंसा का अलग प्रकार’

अपने खेतों में नुकसान पहुँचाते बंदरों को गाँव के किसान गोफन के प्रयोग से भगाते । गोफन के गोले की मार से हड्डी तुड़वाने की अपेक्षा गाँधीजी के अहिंसक आश्रम के खेतों में जाना क्या बुरा है ? वहाँ ऐसी मारपीट का कोई नाम भी नहीं लेगा । संभवतः इसी ख्याल से बंदरों का झुंड आश्रम की खेती की उपज का स्वाद लेने लगा । आश्रम में मूली, मोगरी, टमाटर, पपीता, नारंगी आदि फलते थे । इन कंदमूल और फलों का आहार बंदरों को पसंद आ गया । परिणाम स्वरूप आश्रम की खेती को नुकसान होने लगा । गाँधीजी के पास फरियाद गई। गाँधीजी अति व्यवहारिक व्यक्ति थे । खेती करना, बाग को पोषण करना और फिर बंदरों को कृष्णार्पण (अथवा रामार्पण या हनुमानार्पण) कर देना मूर्खता का कार्य है । इसलिए उन्होंने, इस अहिंसक महात्माने, पंचमहाल से तीर-कमानवाले भीलों को बुलावाकर चौकीदार रखा । तथा महात्मा मोहनदास ने उन्हें शाखामृगों (बंदरों) को तीर से बींधने की छूट दे दी । गाँधीजी की अहिंसा हमारी जीवदया की अहिंसा से कुछ अलग प्रकार की थी ।