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इन्दुलाल याज्ञिक

 

51. ‘ऐतिहासिक सभा’

अस्पृश्यता निवारण का आंदोलन मुंबई और पूणे में तो गाँधीजी के आगमन के पहले ही चलता था । गुजरात में महाराजा सयाजीराव गायकवाड़ ने अछूतों के उद्धार के लिए 19 वीं सदी से प्रयास किये थे । लेकिन गाँधीजी ने तो देश में कदम रखते ही अस्पृश्यता निवारण के पुण्यकार्य को अपने जीवन में गूँथ लिया और तबसे इस संदर्भ में नया इतिहास रचा जाने लगा ।

1917 के नवम्बर महीने में, गुजरात राजकीय परिषद का प्रथम अधिवेशन गोधरा में, गाँधीजी की अध्यक्षता में हुआ । तब परिषद के अंतिम दिन उनकी प्रेरणा और ठक्कर बापा तथा मामा फड़के के प्रयासों से गुजरात के कार्यकर्ताओं, शहर के सवर्णों और अन्त्यज भाईयों की एक ऐतिहासिक सभा हरिजन मुहल्ले में आयोजित की गई ।

श्मशान के रास्ते पर स्थित इस मुहल्ले (वास) में गाँधीजी और अन्य सवर्ण अतिथियों का स्वागत करने, हरिजन भाईयों ने तोरण बाँधे, बहुत-से कमान-युक्त द्वार रच कर संपूर्ण मार्ग को सज्जित किया । देखते ही देखते हजारों लोगों का ठट वहाँ जम गया । ऐसा दृश्य गुजरात में पहली बार ही दिखाई दिया था कि जहाँ सेठ, वकील, व्यापारी और अन्य गृहस्थ हरिजन लोगों के साथ एक सभा में हिलमिल कर एकत्रित हुए हों ।

अपने मुहल्ले में पधारनेवाले बडे़ लोगों के सम्मान में हरिजनों ने अपने झोंपडे़ और आँगन को झाड़-पोंछकर साफ किया और पूरे मुहल्ले को ध्वज तोरणों से सजाया । मेहमानों के आने का समय नजदीक आने लगा तो उनके दिल में घबराहट होने लगी कि ब्राह्मण, बनिया आदि हमारे घर भले ही आ रहे हों, पर हम उनका स्पर्श कैसे कर सकते हैं ? जमाने के कुचले हुए इन लोगोंने निश्चय किया कि सवर्णों के आने से पहले ही सबलोग अपनी-अपनी छपरी (झोंपडी़) के ऊपर चढ़ जाएँ और महात्मा गाँधी का भाषण वहीं बैठकर सुनें ।

ठक्कर बापा आकर मुहल्ले में चक्कर लगाने लगे । इतनी बडी़ सभा तथा सवर्ण भाइयों को निहारकर हर्षित हुए । परन्तु हरिजन समाज के जिन नेताओं से पहले मिले थे, उनकी गैरहाजिरी उन्हें तुरंत खटकी । चक्कर लगाते हुए सहज भाव से उनकी दृष्टि ऊपर गई तो चकित रह गये, क्योंकि सभी हरिजन अपने परिवार सहित छपरे पर चढे़ हुए थे । बापा भी यूँ हार माननेवाले न थे । उन्होंने दर्दभरी वाणी में हरिजन भाईयों से नीचे उतरने का अनुरोध किया । बहुत कोशिश से हरिजन परिवारों को छपरी से नीचे उतरवाने में वे सफल हुए ।