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धीरुभाई ठाकर

 

50. ‘भव्योज्जवल जीवन की चिरप्रतिष्ठा’

महादेव देसाई के सुपुत्र नारायण देसाई ने बचपन से ही गाँधी विचार और आचार के संस्कार पाये थे । मातृभाषा गुजराती के अतिरिक्त वे बांग्ला, हिंदी और अंग्रेजी का ज्ञान रखते हैं । उन्होंने एक दर्जन से अधिक पुस्तकों की रचना की है परन्तु उनकी सर्जकता का वास्तविक उन्मेष तो उनके द्वारा रचित महादेव देसाई और गाँधीजी के जीवन-चरित्र में हुआ है ।

(अग्निकुंड मां ऊगेलुं गुलाब – 1992) ‘अग्निकुंड में खिला हुआ गुलाब’ (1992) महादेवभाई के समग्र जीवन को समेटता उपन्यास जैसा रोचक, रससिक्त और प्रामाणिक चरित्र है । यह जितना महादेवभाई का चरित है उतना ही गाँधीजी का भी बन गया है ।

नारायण देसाई का सर्वोत्तम प्रदेय है गाँधीजी का बृहत् चरित्र ‘मारूं जीवन एज मारी वाणी’ (2003) (मेरा जीवन ही मेरी वाणी है ।) के चार भाग, जो उनके वर्षों के परिश्रम का नतीजा है । लगभग 2200 पृष्ठों में विस्तृत इस चरित्र का प्रकाशन गुजरात के संस्कार-जीवन और गुजराती साहित्य की महत्त्वपूर्ण घटना है । गाँधीजी और उनके जीवन-कार्य से संबंधित असंख्य ग्रंथ लिखे गए हैं । परन्तु गुजराती भाषा में संपूर्ण, सुगठित, अधिकृत बृहद् गाँधी चरित्र उपलब्ध नहीं था । गाँधीजी के जीवन के पल-पल का हिसाब देनेवाला, दुनिया के चरित-साहित्य में अपनी श्रेष्ठता स्थापित करनेवाला, ऐसा प्रभावक गाँधी-चरित प्रदान करने की इच्छा महादेवभाई की थी । इस उद्देश्य से उन्होंने डायरी में सामग्री भी एकत्रित की थी । परन्तु उनका असमय अवसान हो गया । नारायण देसाई ने यह गाँधीचरित रच कर पिता की मनोकामना पूर्ण की है ।

लेखक ने अनेक दुष्प्राप्य साधनों का उपयोग करके, महाकाव्यात्मक इस भव्य, सुंदर चरित्र-कथा को श्रद्धेयता अर्पित की है । इस महाकथा में अनेक सरसिक्त उपकथाएँ सहजता से गूँथी हुई हैं । नारायण ही बता सकें, एसे अनेक सूक्ष्म ब्यौरे रत्नकणिका भाँति इस गाँधीकथा में अपनी जगमगाहट बिखेर रहे हैं ।

नारायण देसाई गाँधीदर्शन को विश्व के समक्ष रखनेवाले समर्थ चिंतक हैं, वे और भी बहुत कुछ हैं । परन्तु इन सबसे अधिक, विश्वविभूति गाँधीजी के भव्योज्जवल जीवन को अक्षरबद्ध करके गुजराती साहित्य में उसकी चिरप्रतिष्ठा करनेवाले समर्थ चरित्रकार हैं । उनकी यह अक्षरसेवा गाँधीजी के साथ चिरस्मरणीय बन गयी है ।