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शंकरलाल बैंकर

 

42. ‘सयाना कूटनीतिज्ञ’

मुहम्मदअली जिन्ना होमरूल लीग की मुंबई शाखा के अध्यक्ष थे और मैं उस शाखा का सचिव था, इसलिए वे मुझसे खुले दिल से बातें करते थे । वर्षभर मैं गाँधीजी के साथ जेल में रह आया था इसलिए स्वाभाविक रूप से वे उनके विषय में पूछते लगे । गाँधीजी के साधू जैसे संयमी जीवन का मुझ पर गहरा असर था, अतः उसी बारे में मैं उनसे कहने लगा ।

परन्तु जिन्ना के मन में गाँधीजी के प्रति कुछ अलग ही विचार पुष्ट हो गये थे । वे मुझसे बोले कि, “आप गाँधी को पहचानते नहीं हैं । वे बडे़ क्रांतिकारी तो हैं ही, साथ ही साथ महान कूटनीतिज्ञ भी हैं । देखिए तो जरा, सरकार से लडा़ई में कैसी चतुराई से काम लेते हैं ! पहले लोगों से सम्पर्क साधते हैं । जिस बारे में उन्हें दुख हो उसे वे स्वयं अपने हाथ में लेते हैं ! आंदोलन शुरू करते हैं और शक्ति इकट्ठा करके लडा़ई में जुट जाते हैं और जोश के साथ लडा़ई चलती है । पर बाद में, कहीं कुछ गड़बड़ हो, हिंसा हो या ऐसा कोई कारण ज्ञात हो जिसके सरकार के हाथ मजबूत हों और वह कुछ कठोर कदम उठाने को तैयार हो, तब गाँधी बडी़ होशियारी से लडा़ई समेट लेते हैं । जिसके वातावरण शांत हो जाता है । लेकिन कुछ समय के पश्चात् असंतोष को कोई कारण दिखे कि तुरंत फिर से जोरों का आंदोलन प्रारम्भ करते है । लडा़ई शुरू करते हैं, समेट लेते हैं, फिर दोबारा शुरू करते हैं । इस प्रकार से लोगों को लडा़ई की तालीम देते जाते हैं । सरकार की ताकत बहुत है और लोगों में बहुत कमजोरी है इस लिए आंदोलन एकसाथ लंबे समय तक चलाया नहीं जा सकता । परन्तु इस प्रकार युक्तिपूर्वक थोडे़-थोडे़ समय आंदोलन चलाकर, फिर बंद करके, दोबारा शुरू करके वे लोगों को तैयार करते जाते हैं । इसलिए आप जैसा समझते हैं गाँधी वैसा साधू नहीं हैं बल्कि बडे़ चतुर और सयाने कूटनीतिज्ञ है ।”