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शंकरलाल बैंकर

 

43. ‘क्या यह कहूँ कि फिल्म बनाओ ?’

1992 में गाँधीजी को 6 वर्ष कैद सजा हुई थी । उनके साथ मुझे भी एक वर्ष की सजा हुई थी । एक साल मैं गाँधीजी के साथ जेल में रहा, उस समय उनकी दिनचर्या में कातने – पींजने को मुख्य स्थान था । शरीर के काम करने की हद तक उन्होंने रोज दो घंटे कातने के लिए रखे थे । इसी दौरान एक नेता, जिनकी कैद की अवधि समाप्त होने आई थी, गाँधीजी से मिले और पूछा, ‘बापू ! जेल बाहर मुझे क्या करना चाहिए, इस विषय में मुझे कुछ सलाह दीजिए ।’

गाँधीजी ने कहा, ‘बाहर जाकर जोर-जोर से देश में खादी का प्रचार करो ।’

वे स्वयं खादी प्रेमी थे और श्रद्धापूर्वक चरखा भी चलाते थे । परन्तु लोगों की वृत्ति के संबंध में उनके मन में संदेह था । इसलिए उन्होंने कहा ‘बापू ! आपका कहना ठीक है पर यह खादी चलेगी कैसे ? यदि लोगों को यह पसंद न आये तो क्या किया जा सकता है ?’

उन सज्जन के ऐसे प्रश्न से गाँधीजी को दुख हुआ और वे कुछ व्यग्रता से बोल उठे, ‘ठीक है, फिर आप ही कहिए कि दूसरा क्या काम बताऊँ ? क्या में यह कहूँ की सिनेमा निकालिए ? सिनेमा तो लोगों को बहुत पसंद आयेगा । सैकडो़ की संख्या में लोग यह देखने आयेंगे और उसके लिए पैसे भी देंगे । पर उससे क्या ? क्या हमारा कार्य, लोगों को पसंद की प्रवृत्ति बताना ही है ? हमें तो उन्हें वही मार्ग दिखाना चाहिए जिसमें उनका हित हो और चरखा ही वह मार्ग है ।’

गरीब प्रजा को तन ढकने के लिए पूरा कपडा़ नहीं मिलता, इस स्थिति से चौंक कर उन्होंने लंगोट धारण किया था और अन्य सभी वस्त्रों का त्याग किया था । देश में गरीबी का दुख तो है ही, परन्तु प्रजा में घर बना कर बैठा आलस्य गाँधीजी को इससे भी अधिक खटकता रहता था । इसलिए वे कहने लगेः ‘लोगों को कपडा़ नहीं मिलता और भुखमरी सहनी पड़ती है, यह दुख की बात है ही । परन्तु इससे भी अधिक दुखद तो उनमें भरा हुआ आलस्य है । अपने देश की ऐसी दयनीय स्थिति क्यों है ? इस पर विचार करें तो इसके मूल में आलस्य ही भरा मिलेगा । प्रजा को यदि गरीबी खटकती हो तो मेहनत करके उसे दूर करने का प्रयत्न करना चाहिए । लेकिन आज तो आलस्य का जाला ऐसा जम गया है कि जहाँ गरीबी और बहुत दुख है वहाँ आलस्य भी उतना ही अधिक दिखाई देता है । यह आलस्य दूर हो तो गरीबी मिटे । आलस्य को दूर करने का असल उपाय यह है कि ग्रामीण जन जिसे आसानी से कर सकें, ऐसे कामों में उन्हें लगाना । तभी उनके शरीर का और साथ-साथ मन का आलस्य भी दूर होगा ।’