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काका कालेलकर

 

27. राजनैतिक कैदी

स्वराज्य के लिए नमक सत्याग्रह प्रारम्भ कर गाँधीजी 1930 में जेल गये सरकार ने उन्हें यरवडा जेल में एक राजनैतिक कैदी के रूप में रखा । उस समय उनके साथ रहने के लिए सरकारने मुझे चुना और साबरमती जेल से यरवडा जेल भेज दिया गया । तब गाँधीजी के साथ मैं पाँच-सवा पाँच माह रहा हूँगा । इस आंदोलन के समय गाँधीजी आठ मास यरवडा जेल में रहे । सरकार से अनुकूलता न मिलने पर गाँधीजी ने व्यक्तिगत मुलाकातें बंद कर दीं और हर सप्ताह लोगों को पत्र लिखना प्रारम्भ किया । इस प्रकार उन्होंने सैकडो़ पत्र भेजे ।

लेकिन गाँधीजी की चित्तवृत्ति सोलहों आने जुडी़ रहती थी उनके कातने के कार्य में तथा तकली, चरखा या पींजने आदि में निरन्तर सुधारने के प्रयोगों में । जब वे एकाग्र होकर चरखा चलाते थे तो उनके कातने का तालबद्ध स्वर ऐसा मधुर एवं भव्य लगता था मानो अनुष्टुप छंद में लिखे महाभारत के श्लोक सुन रहे हों ।

उन दिनों जेल में बैठे-बैठे उन्होंने खपरैल के टुकडे़ अथवा घडों की ठीकरियों और बाँस की सलाइयों से कितनी ही तकलियाँ स्वयं बनायी । जीवन चक्र, गांडीव, बारडोली चक्र, किसान का चरखा आदि भिन्न-भिन्न प्रकार के चरखे उनके पास जमा हो गये थे । गाँधीजी ने प्रत्येक चरखे की खामी और खूबी जाँची। अंत में उन्होंने एक सुंदर चरखा ढूँढ निकाला जिसे आज यरवडा चक्र का नाम मिला है ।

जेल में पहुँचते ही धुनकी (धुनने का यंत्र) मँगवायी और अपने कमरे की छत से लटकाकर रुई धुनना और पूनी तैयार करने का काम बडे़ व्यवस्थित तरीके से करने लगे । इस प्रकार तकली और चरखा बनाने से लेकर रुई धुनने, पूनी बनाने, सूत कातने, उनका दर्जा सुधारने तथा टोपियाँ सीने तक के विविध कार्य उन्होंने पूर्ण एकाग्रता से किए ।

साथ ही जेल में बैठे-बैठे हिंदुस्तान के असंख्य लोगों तथा उनके परिवार की चिंता भी बापू करते थे । जितने पत्र आते, उतने सभी लोगों के व्यक्तिगत और पारिवारिक प्रश्नों पर गहरे चिंतन द्वारा शारीरिक, मानसिक एवं आध्यात्मिक आरोग्य का एक साथ विचार कर, अपनी सलाह देते ।