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काका कालेलकर

 

28. ‘बढ़िया खिलाडी़’

गाँधीजी को कैसे – कैसे लोग सहकारी के रूप में मिले, परन्तु उन्होंने कभी फरियाद नहीं की । ताश का उत्तम खिलाडी़ हाथ में जो पत्ते आएं उन्हीं से खेलता है, खराब पत्तों की शिकायत नहीं करता । वह कहता है कि, पत्ते चाहे जैसे मिलें, मैं तो उन्हें ही लेकर खेलता रहूँगा, खेल छोडूँगा नहीं ।’

अपने पूरे जीवन में बापू ने कभी शिकायत नहीं की कि भगवान ने मुझे ऐसे साथी क्यों दिए अथवा ऐसा देश क्यों दिया ? जो कुछ भाग्य में आया, उसका उन्होंने योग्य और उत्तम उपयोग किया, ऐसी अदभुत शक्ति थी उनमें । इतने अलग-अलग प्रकार के लोगों को संभालना, उनसे बडे़-बडे़ काम करवाना और साथ ही कहीं भी सत्य के प्रति द्रोह न हो, इसका पूरा ख्याल रखकर सावधान रहना – यह कोई छोटी-मोटी सिद्धी नहीं है ।