उमाशंकर जोशी
16. ‘अनमोल अधेला’ |
खादी के काम के लिए चंदा इकट्ठा करने गाँधीजी उडी़सा की यात्रा पर थे । एक सभा में गाँधीजी बैठे थे कि एक अत्यन्त वृद्धा बहन आई । उसके बाल श्वेत पूनी जैसे थे, कमर झुकी थी । स्वयंसेवकों से झगण कर वह गाँधीजी के पास आ पहुँची थी । ‘आपके दर्शन करना – है’ कहकर उसने गाँधीजी के चरणों में गिरकर नमस्कार किया। अपनी अंटी से एक अधेला निकालकर गाँधीजी के चरणों में धरा । तत्पश्चात् शांत-भाव से लौट गई । वृद्धा द्वारा रखा गया अधेला गाँधीजी ने तत्परता से उठाया और अपनी टेंट में खोसं लिया । सारा हिसाब रखनेवाले सेठ जमनालाल बजाज पास ही बैठे थे, बोलेः ‘यह अधेला मुझे दे दीजिए ।’ गाँधीजी ने कहा, ‘यह आपको नहीं दिया जा सकेगा ।’ जमनालालजीः ‘चरखा-संघ का हजारों का चेक मैं लेता हूँ और इस अधेले के लिए आप मेरा विश्वास नहीं कर रहे हैं?’ गाँधीजी बोलेः ‘यह अधेला तो अनमोल है । आदमी के पास लोखों हों उसमें से हजार दे दे तो कोई बडी़ बात नहीं । परन्तु इस वृद्ध, गरीब फटेहाल बहन ने यह अधेला दिया है, उसका हृदय कितना उदार होगा ! उसका यह अधेला तो करोडो़ से भी बढ़कर है ।’ |