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उमाशंकर जोशी

 

15. ‘गरीबों की बा’

एक बार बापू सेवाग्राम में थे, तब बा दूसरे शहर से आने वाली थीं । सब पूछने लगे, बा कब आयेंगी ? किस गाडी़ से आयेंगी ?

सूरत की ओर गई हुई थीं, वहाँ से मुंबई पहुँच कर, वर्धा आ सकती थीं । परन्तु यह रास्ता लंबा और महँगा था । सूरत जाकर ‘ताप्ती वैली’ ट्रेन में भुसावल के रास्ते से आने पर खर्च कम लगेगा ।

एक बहन विशेष रूप से बा से मिलने के लिए रुकी हुई थी । मुंबई की ओर से आनेवाली गाडी़ का समय हो गया था, अतः उन्होंने पूछा, ‘बा अभी आ जायेंगी ना ?’

बापू ने कहा, ‘यदि वे धनवानों की बा होंगी तो अभी आ जायेंगी और गरीबों की बा होंगी तो सुरत होकर ‘ताप्ती वैली’ से सुबह आयेंगी।

और बा गरीबों की बा, सचमुच दूसरे दिन सुबह आयीं । इस अनोखे दम्पती के मित्र हारेस एलेक्जेंडर ने अपनी टिप्पणी देते हुए कहा है कि बै और बापू एक घर में हों, पास-पास के कमरे में हों, एक दूसरे से खास कुछ बोलते नहीं तो भी हमें सदैव लगता रहता है कि दोनों एक दूसरे को बडी़ गहराई से समझते हैं ।