| | |

मिली ग्रेहाम पोलाक

 

10. जोहनेसबर्ग की सभा

जोहनेसबर्ग की एक शाम । भारतीयों तथा गाँधीजी के प्रति समभाव रखनेवालों की एक विशाल सभा का आयोजन था । हाल खचाखच भरा था, तिल-भर जगह नहीं बची थी और लोगों को दरवाजे के बाहर तथा बरामदे में खडे़ रहना पडा़ । गाँधीजी मुख्य वक्ता थे । वे जहाँ-जहाँ जाते, हर जगह उन्हें सुनने के लिए लोग उमड़ पड़ते थे । सभा के समाप्त होने पर गाँधीजी व्यासपीठ से उतरे और कुछ लोगों के साथ कुछ बातें की । फिर मैं और वे साथ-साथ बाहर निकले । हम दरवाजे तक पहुँचे कि मैंने अंधेरे में खडे़ एक व्यक्ति को देखा । ऐसा लगा कि गाँधीजी की नजर भी उस पर पडी़, क्योंकि वे सीधे उस आदमी के पास गये, उसके हाथ पर अपना हाथ धरा और शांत, स्वस्थ तथा गंभीर आवाज में उसे कुछ कहने लगे । वह क्षणभर को झिझका, फिर मुड़कर गाँधीजी के साथ चलने लगा । मैं उनके दूसरी ओर चलने लगी । इस तरह चलते हुए हमने पूरा मुहल्ला पार किया । वे दोनों क्या बाते कर रहे थे, यदि मैं सुन पाती तो भी समझती नहीं । पर मैं वह सुन ही नहीं पा रही थी क्योंकि दोनों बहुत ही धीमी आवाज में बोल रहे थे । मुहल्ले का छोर आया तो उस आदमी ने गाँधीजी के हाथ में कुछ पकड़ाया और चलता बना । इस पूरी घटना से मैं कुछ व्यग्र हो गई । उसके जाने पर मैंने गाँधीजी से पूछाः ‘इसे क्या चाहिए था – कुछ खास माँगने आया था ?’

गाँधीजी बोले, ‘हाँ ! वह मेरी जान लेने आया था ।’

‘आपकी जान लेने ?’ मैं चौंक उठी, ‘आपकी जान लेने? कितना भयानक ! क्या वह पागल है ?’

“नहीं, वह यह मानता है कि मैं अपने लोगों के साथ दगा कर रहा हूँ । मैं सरकार के षड़यंत्र में जुड़कर भारतीयों का अहित करना चाहता हूँ, फिर भी उनका मित्र और नेता होने का दिखावा करता हूँ ।”

“परन्तु ऐसा मानना निरी दुष्टता है, यह भयानक बात है ।” – मैं जोर से बोली, “इसे तो पुलिस कें हाथों पकड़वाना चाहिए । आपने इसे इस तरह जाने क्यों दिया ? पागल ही होगा वह ।”

गाँधीजी ने कहा, “नहीं पागल नहीं है, मात्र वहम से भरा हुआ है । आपने देखा कि मैंने उसके साथ बातें की उसके बाद उसने छुरी मेरे हाथ में दे दी । उसने इसी छुरी का वार मुझ पर करने का निर्णय किया था ।”

“उसने यदि अंधेरे में प्रहार किया होता तो.... मैं....”

गाँधीजी बीच में ही बोल उठेः “इतना घबराओ मत । उसके मन में तो था कि इसे मारूँ, पर ऐसा करने की पूरी हिम्मत उसमें नहीं थी । उसने मुझे जैसा माना, यदि मैं उतना बुरा होऊँ तो मारने लायक ही माना जाऊँगा । अब वह इस विषय में अधिक चिंता नहीं करेगा । यह किस्सा तो यहीं खत्म हुआ । मैं नहीं मानता कि वह अब दोबारा मुझे घायल करने का प्रयत्न करेगा । यदि मैंने उसे पुलिस के हाथों पकड़वाया होता तो वह मेरा शत्रु बन जाता । पर अब तो वह मेरा मित्र बनेगा ।”