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लल्लुभाई म. पटेल

 

8. एक अनोखा धोबी

दक्षिण अफ्रिका में गाँधीजी के नेतृत्व में हिन्दुस्तानियों ने सत्याग्रह आन्दोलन किया था । बडी़ संख्या में लोग जेल गये । उनमें से कुछ ऐसे भी थे जिनके कुटुम्ब की देखभाल करनेवाला उनके सिवाय कोई न था । ऐसे परिवारों के लिए गाँधीजी के आश्रम टालस्टाय फार्म में व्यवस्था की गई ।

गाँधीजी जेल से छूटकर आने के बाद बहनों से मिलना, उन्हें आश्र्वस्त करना में चूकते नहीं थे । उनके घरेलू कार्यों में भी कई बार मदद करते थे ।

एक दिन गाँधीजी अपने कपडे़ धोने नदी की ओर जा रहे थे । छोटे-छोटे बालकों की मातोओं की तकलीफ का ख्याल कर वे उनके पास जाकर बोले, ‘आज आप सबके कपडे़ मैं धो डालूँगा । नदी काफी दूर है और आपको इन नन्हे-मुन्नों को संभालना होता है । बच्चों के मल-मूत्र वाले कपडे़ हों तो वह भी मुझे दे दीजिए ।’

‘अरे, गाँधीभाई को भला ऐसे कपडे़ धोने के लिए दिये जा करते हैं क्या ! यह तो देर-सबेर हम ही धो डालेंगी ।’ प्रेम और संकोचमिश्रित आत्मीयता से बहनें बोलीं ।

पर गाँधीजी हार मानने वाले नहीं थे । उन्होंने कपडे़ ले जाने का आग्रह जारी रखा । बहनों के संकोच का पार न था । परन्तु अंत में प्रेम की विजय हुई । सारे कपड़ो का एक बडा़ गट्ठर बाँधा और पीठ पर लादकर गाँधीभाई नदी की ओर चल पडे़ ।

वहाँ पहुँचकर प्रेमपूर्वक सारे कपडे़ धोये, नदीतट पर सुखाये । उनकी तह करके ‘फार्म’ में ले आये और घर-घर घूमकर बहनों को उनके कपडे़ पहुँचाये । ऐसे धोबी द्वारा धुले वस्त्र पहनते हुए बहनों ने कैसी-कैसी आत्मीय भावनाएँ अनुभव की होंगी ।