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लल्लुभाई म. पटेल

 

7. ‘भाषण के पहले का काम’

एक बार गाँधीजी दक्षिण अफ्रिका से लंदन गये हुए थे । अफ्रिका के महान हिन्दुस्तानी नेता के रूप में उनकी ख्याति लंदन में भी फैली थी । उस समय बहुत-से हिंदुस्तानी लंदन में रहते थे । उनमें कुछ क्रांतिकारी युवा थे और कुछ विद्यार्थी सभी देश की आजादी की ललक से भरे हुए थे । गाँधीजी की उपस्थिति विचार किया । समारोह में बस इतना ही कार्यक्रम था कि पहले भोजन और तत्पश्चात् भाषण ।

युवाओं ने गाँधीजी से अध्यक्ष-पद स्वीकार करने की विनती की । गाँधीजी ने इस शर्त पर स्वीकृति दी कि भोजन शाकाहारी होगा तथा उसमें मद्य (शराब) का समावेश नहीं होगा ! युवाओं ने गाँधीजी की शर्त सहर्ष मान ली ।

अफ्रिका-आंदोलन के विजेता गाँधीजी अध्यक्ष के रूप में आयेंगे यह सोचकर युवा वर्ग अति प्रसन्न था और एक सुंदर भाषण की अपेक्षा कर रहा था । सभी लोग उत्साह से काम में लग गये । थालियाँ साफ करना, साग-भाजी काटना आदि कार्य उन्होंने स्वयं ही बाँट लिए । गाँधीजी भी समारोह के समय से लगभग 6 घंटे पहले पहुँच गये और उन सब युवकों के साथ काम करने लगे । किसी को पता तक न चला कि समारोह के अध्यक्ष गाँधीजी भी उन्हीं के साथ बैठ कर बर्तन साफ कर रहे हैं ।

समारोह का समय होने आया । प्रमुख कार्यकर्ता और नेतागण गाँधीजी के स्वागत के लिए दरवाजे के पास आ खड़े हुए । परन्तु गाँधीजी नहीं आये । किसी ने सुझाव दिया कि मि. गाँधी को आज विलम्ब हो रहा है अतः हम पहले भोजन की व्यवस्था देख लें । इस उद्देश्य से एक नेता अंदर गये । एक दुबला युवा अन्य युवकों के साथ बैठा रसोई का काम कर रहा था, उस पर दृष्टि पड़ते ही, अचंभित नजरों से वे एक-टक देखते रह गये । दूसरों को संदेह हुआ कि कहीं कोई सी.आई.डी. तो नहीं घुस गया है ? आखिर हिम्मत करके उन्होंने पूछा – ‘ये कौन हैं ?’

‘मि. गाँधी, आज के हमारे समारोह के अध्यक्ष स्वयं यहाँ हैं । उस नेताने लज्जित होते हुए कहा ।’

कानोंकान बात फैली और समारोह के लिए पधारे सभी को ज्ञान हो गया कि हम सब जिनकी प्रतीक्षा कर रहे हैं, वे अतिथि तो रसोई में काम कर रहे हैं । सभी के दिल में खलबली मच गयी ।

‘अरे, मि. गाँधी से ऐसे काम करवाने चाहिए क्या ?’ कितने ही बोल पडे़ ।

क्रांतिकारा युवा गाँधीजी का यह तरीका देख विस्मित थे । वे उनके पास दौड़े और हाथ जोड़कर काम बंद करने की विनती करने लगे ।

गाँधीजी ने कहा, ‘नहीं, अब पूरा कार्य करके ही उठेंगे ।’

कार्य पूरा हुआ । फिर थालियाँ परोसी गई । गाँधीजी ने परोसने में भी भाग लिया और भोजन के पश्चात् अध्यक्षपद से भाषण भी दिया ।