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खण्ड 3 :
कर्म-योगी

29. हरएक काम भगवान् की पूजा

साबरमती का आश्रम अभी-अभी शुरू हुआ था । दक्षिण अफ्रीका में सत्याग्रह का सफल प्रयोग करके गांधीजी स्वदेश लौटे थे । गुरु ना. गोखले की सलाह के अनुसार सारा भारत घूमकर वे साबरमती के किनारे आश्रम स्थापित करके साधना कर रहे थे । महात्माजी कभी-कभी अहमदाबाद के बाररूम में भी जाते और चर्चा किया करते थे । सरदार वल्लभभाई ताश खेलने बैठते । गांधीजी की ओर कोई खास ध्यान नहीं देता था । परन्तु धीरे-धीरे कुछ वकीलों में कुतूहल पैदा होने लगा । गांधीजी के पास कुछ काम माँगने की उनको इच्छा होने लगी ।

एक दिन आश्रम में गांधीजी अपने साथियों के साथ काम कर रहे थे । पूरा स्वावलम्बन था । महात्माजी और विनोबाजी साथ-साथ एक ही चक्की पर बैठकर पीसते थे । कितना महान् अनुभव ! लेकिन आज पिसाई नहीं, अनाज-सफाई चल रही थी । पहले सफाई, फिर पिसाई । गांधीजी, विनोबाजी और अन्य साथी अनाज साफ करने बैठे थे ।

इतने में कुछ वकील लोग आये । उनके बैठने के लिए खजूर की चटाई बिछाई गयीं ।

“बैठिये’’-गांधीजी बोले ।

‘हम बैठने नहीं आये । हमें कुछ काम दीजिये । आपका कुछ-न-कुछ काम करने के विचार से हम आये हैं ।’’

‘‘ठीक है । खुशी की बात है ।’’-इतना कहकर दो-तीन थालियों में अनाज लेकर उन वकिलों के आगे रख दिया ।

“यह अनाज साफ कीजिये । ठीक से साफ कीजिये ।’’

“हम क्या यह ज्वार-बाजरा साफ करते बैठेंगे ?”

“जी हाँ । इस समय यही काम है ।’’

क्या करते बेचारे ? वे सफेदपोश वकील अनाज साफ करते बैठे । कुछ देर बाद नमस्कार करके चले गये । फिर कभी काम माँगने नहीं आये । गांधीजी की दृष्टि में स्वतंत्रता के लिए संघर्ष करना, अस्पृश्यता निवारण के लिए उपवास करना जितना महत्व का काम था, उतना ही महत्व का काम दाल-चावल बीनना भी था । उन्होंने ऐसा कभी नहीं कहा कि यह तो औरतों का तुच्छ काम है । सेवा का प्रत्येक कर्म पवित्र है । हरएक कर्म में अपनी आत्मा उँडे़ल दो । वह कर्म ठीक से करना यही परमेश्वर की पूजा है, यही मोक्ष है ।