| | |

खण्ड 2 :
राष्ट्रपिता

28. इच्छा-शक्ति का वह चमत्कार

आज एक करुण और गंभीर संस्मरण सुना रहा हूँ । सन् 1943 के दिन थे । उन दिनों को कौन भूल सकता है ? ‘भारत छोडो़’-आन्दोलन का जोर कम हो गया था । जयप्रकाशजी जेल से भागकर फिर से संगठन मजबूत बनाने में लगे थे । आजाद दस्ते जगह-जगह कायम कर रहे थे । इतने में आगाखाँ महल में गांधीजी का उपवास प्रारम्भ हुआ । सबके मुँह सूख गये । लार्ड लिनलिथगो राष्ट्रपिता को छोड़ने को तैयार नहीं थे । उधर चर्चिल जैसे जिद्दी साम्राज्यवादी व्यक्ति प्रधानमन्त्री था । गांधीजी की उसकों क्या कद्र थी ? बम्बई से कुछ व्यक्ति गांधीजी से मिलने जा सकते थे । उनके द्वारा कुछ समाचार मिल जाता था ।

गांधीजी का स्वास्थ्य उस दिन चिन्ताजनक था । नाडी़ ठीक नहीं चल रही थी । डाक्टर असहाय-से हो गये थे । कहते हैं कि उन्होंने सरकार को बता दिया था कि हम महापुरुष को जबरदस्ती नली से अन्न कभी नहीं देंगे, ऐसी विडम्बना वे नहीं करेंगे । लेकिन कहीं गांधीजी का देहान्त हो जाय तो ? सरकार ने निश्चय कर रखा था कि तीन दिन तक इस समाचार का देश को पता नहीं लगने दिया जायगा । खास-खास जगहों पर सेना तैनात कर दी गयी था । यह भी सुना था कि जरुरत पड़ने पर चन्दन की लकडी़ भी सरकार ने तैयार रखी थी ।

उस दिन बम्बई में जयप्रकाशजी, अच्युतराव आदि कुछ साथी चिंता कर रहे थे । कार्यकर्ता सोच रहे थे कि भले सरकार यह समाचार दबाने की कोशिश करे, लेकिन लाखों की तादाद में पर्चें छापकर जनता को वे जरूर जानकारी कर, देंगे । कब क्या समाचार आये, क्या ठिकाना ?

“जयप्रकाश’ आप पर्चा लिखिये । सभी भाषाओं में उसका अनुवाद कराना होगा । इस समय आँसू पोछ लीजिये और लिखिये”-अच्युतराव ने कहा । साथी गदगद हो रहे थे । गांधीजी अपने बीच में से उठ गये । हैं, यह कल्पना करके लिखना था । हम चालीस करोड़ लोग होते हुए उन्हें जेल से छुडा़ नहीं सके ! कितनी शर्मनाक बात है । जयप्रकाशजी ने लिखने के लिए कलम-कागज उठाया । एक शब्द लिखते थे तो आँसू की बूँद से वह मिट जाता था । इस प्रकार आँसुओं से भीगा हुआ पत्रक तैयार हुआ । उसका मराठी में अनुवाद करने के लिए एक प्रति मेरे पास आयी ।

इतने में समाचार आया कि नाडी़ ठीक हो गयी । संकट टला, राष्ट्रपिता अब नहीं जायगा । महात्मा की संकल्प-शक्ति की तो वह विजय नहीं ? वह एक चमत्कार ही था । स्वराज्य अपनी आँख से देखे बिना महापुरुष जाता कैसे ? उस रात का स्मरण होता है, तो आज भी हृदय अनेक स्मृतियों से भर आता है ।