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खण्ड 1 :
कला-प्रेमी और विनोद

2. देहाती कलर और बापू

बहुतों को लगता है कि गांधीजी रूक्ष पुरूष थे । कई लोग मानते हैं कि उनके लिए जीवन में कला या विनोद का स्थान नहीं था । लेकिन यह बिलकुल गलत है । काठियावाड़ में डसो नाम की एक छोटी रियासत थी । उस रियासत के मालिक थे दरबार गोपालदास । गांधीजी के दक्षिण अफ्रीका से लौटने के बाद उनकी सिखावन की छाप दरबार गोपालदासजी पर बहुत गहरी पडीं । उन्होनें अपनी छोटी रियासत को आदर्श बनाने का निश्चय किया । गाँवों में साक्षरता का काम प्रारंभ हुआ । हर घर का आँगन रोज लीपा जाने लगा, रांगोली से चौक पूरा जाने लगा । गाँवों में जनता के न्यायमन्दिर शुरू हुए । उनमें रियासत के अधिकारियों के विरुद्ध भी मुकदमें चलाये जाते थे । गाँवों में भिन्न-भिन्न कलाओं को भी प्रोत्साहन दिया जाने लगा । सामुदायिक नृत्य, गरबा आदि उत्सव भी होने लगे ।

कुल मिलकर डसो गोकुल के समान गूँजने लगा । एक बार दरबार गोपालदासजी के मन में आया कि अपने यहाँ की ग्रामीण नृत्य-कला शहर के लोगों को दिखायी जाय । अतः उन्होंने अहमदाबाद जाने का निश्चय किया । डसो की ग्रामीण कलाकारों की मण्डली साथ लेकर दरबार गोपालदास अहमदाबाद गये । अहमदाबाद शहर में ग्रामीण नृत्य, टिपरी (गरबा नृत्य) आदि के अति सुन्दर कार्यक्रम हुए ।

कार्यक्रम के बाद दरबार गोपालदासजी गांधीजी से मिलने साबरमती-आश्रम आये। बोलेः “शहर के लोगों को भी बहुत पसन्द आये ।’’

बापू बोलेः “लेकिन वह तो आपने पहले शहर में दिखाये। मेरे आश्रम में तो नहीं दिखाये ।’’

‘आपके आश्रम में दिखाऊँ ?

“पूछना क्या है ? गाँवों की निष्पाप कला का मैं रसिक हूँ ।’’

अगले दिन आश्रम में उन ग्रामीण कलाकारों ने महात्माजी के सामने अत्यन्त सुन्दर कार्यक्रम प्रस्तुत किया । कार्यक्रम जारी था । महात्माजी ने दरबार गोपालदासजी से कहाः “डसो का राजा अपने गाँव में नृत्य में शरीक होता है, यह मैं जानता हूँ । फिर यहाँ क्यों वह अलग बैठा है ? गोपालकृष्ण क्या गोपालों के साथ नाचने में शरमायेगा ?’’

इतना सुनना था कि दरबार गोपालदासजी उठे और ग्रामीण कलाकारों में शामिल हो गये । नाचते-नाचते वे अपनी सुध-बुध भूल गये । उन्हें असीम आनन्द हुआ। गांधीजी खुश हो गये ।
अगले दिन आश्रम में उन सब कलाकारों को गांधीजी ने बडे़ प्रेम से भोज दिया और स्वयं परोसा ।

ऐसे थे बापू !

ग्रामीण जीवन में आनन्द भरनेवाली अकृत्रिम और निष्पाप कलाएँ बापूजी को अत्यन्त प्रिय थी ।